वीर अब्दुल हमीद एक वीर भारतीय सैनिक थे, जिन्होंने अपने देश के लिए अनमोल बलिदान दिया। परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद का जन्म (Abdul Hamid Birthday) 1 जुलाई 1933 को यूपी के गाजीपुर जिले स्थित धामूपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद अब्दुल है और मां का नाम नूर जहाँ है। वीर अब्दुल हमीद के परिवार में चार बहने भी थीं। वे 20 वर्ष की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध में वीरता की मिसाल पेश की थी।
वीर अब्दुल हमीद की शिक्षा का अध्ययन मिलान शिक्षा संस्थान, गाजीपुर में हुआ था। उन्होंने अपने शिक्षा के दौरान ही राष्ट्रीय कैडेट कोर में शामिल होने का संकल्प बना लिया था। उन्हें सैन्य जीवन में करियर बनाने की उचित रुचि थी। भारतीय सेना में शामिल होने का अवसर मिला जब उन्होंने नेशनल डिफेंस अकैडमी (NDA) का सफलतापूर्वक सेलेक्शन किया। नेशनल डिफेंस अकैडमी में प्रवेश करना सैन्य करियर बनाने के लिए एक गर्वनिय और माननीय कदम होता है। इसके बाद वीर अब्दुल हमीद को इंडियन मिलिट्री अकेडमी (IMA) देहरादून में प्रवेश मिला और उन्होंने अपने प्रशिक्षण का कोर्स पूरा किया।
Happy Birthday Abdul Hamid: हमारे देश के वीर जवानों ने न केवल एक, बल्कि कई बार पाकिस्तान की सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया है। चाहे वह 1965 का युद्ध हो, 1971 का या कारगिल युद्ध, सभी में भारत ने विजय की प्राप्ति की। आज हम एक ऐसे वीर की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने अकेले दम पर पाकिस्तान की सेना को छठी के दूध याद दिला दिए थे। जी हां, हम बात कर रहे हैं परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद की, जिन्होंने युद्ध में शहीद होने से पहले पाकिस्तानी सेना के आठ पैटन टैंको को नष्ट कर लड़ाई का रुख पलट दिया था। पाकिस्तान को भागना पड़ा था और इस तरह से भारतीय सेना को विजय मिली थी।
पहला युद्ध चीन से लड़ा था
1955 में प्रशिक्षण के बाद, निसाराबाद ग्रिनेडियर्स रेजिमेंट में तैनात होने पर हमीद 4 ग्रेनेडियर्स की कंपनी में शामिल किए गए। 1962 में भारत-चीन युद्ध में वे थांग ला से 7 माउंटेन ब्रिगेड, 4 माउंटेन डिविजन की ओर से भाग लिए। वीर अब्दुल हमीद की पत्नी रसूलन बीवी के अनुसार, भर्ती होने के बाद उन्होंने पहला युद्ध चीन से लड़ा और जंगल में भटककर कई दिनों तक भूखे रहकर किसी तरह घर वापस आए थे, जहां पत्ता तक खाना पड़ा था।
तैनात थे पंजाब में
युद्धावस्था में: चीन से युद्ध विराम के बाद, हमीद को अंबाला में कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार के रूप में नियुक्त किया गया। 8 सितंबर 1965 को, जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया, वे पंजाब के तरनतारन जिले के केमकरण सेक्टर में तैनात थे। उस समय, वे युद्ध से पहले 10 दिनों के लिए छुट्टी पर घर आए थे। जब रेडियो से युद्ध के मैदान में जाने की खबर मिली, तो वे हड़बड़ाए हुए जंग के इंतजार में बेताब हो गए। उनके घरवाले मना करते रहे, जाते समय कई अपशगुन हुए, उनकी बेडिंग खुल गई और साइकिल का पंचर भी हो गया, लेकिन सुबह को वे फिर निकल पड़े और जिस जंबाजी से उन्होंने लड़ाई लड़ी, वह सबको पता है।
पैटन टैंकों को ध्वस्त कर दिया
उस समय, पाकिस्तान ने अमेरिकन पैटन टैंकों के साथ खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला किया। वे टैंकों को अपने कम संसाधनों के बावजूद भी ध्वस्त कर दिए। 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे, उनकी जीप चीमा गांव के बाहरी इलाके से गन्ने के खेतों से गुजर रही थी। वे जीप में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठे थे। उन्हें दूर से टैंकों के आने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद उन्हें टैंकों का पता चला और वे टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार करने लगे और गन्नों की आड़ का फायदा उठाते हुए फायर कर दिया। उन्होंने एक बार में 4 टैंकों को उड़ा दिया था। उनके इस शानदार प्रदर्शन की खबर 9 सितंबर को आर्मी हेडक्वार्टर्स में पहुंच गई थी। उन्हें परमवीर चक्र की प्राप्ति की सिफारिश भेज दी गई थी।
वतन की हिफाजत के लिए शहीद
10 सितंबर को, उन्होंने तीन और टैंकों को नष्ट कर दिया था। जब उन्होंने एक और टैंक को निशाना बनाया, तो एक पाकिस्तानी सैनिक ने उन्हें देख लिया था। दोनों तरफ से फायर हो गया। पाकिस्तानी टैंक नष्ट हो गया, लेकिन अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए। इस तरह, भारत माता के लाल ने वतन की हिफाजत के लिए अपने बलिदान से शहादत प्राप्त कर ली।
मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित
उनके पराक्रम, शौर्य, और बलिदान को देखते हुए उन्हें अंतिम सम्मान में मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था। 28 जनवरी 2000 को, भारतीय डाक विभाग ने वीरता पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पांच डाक टिकटों पर उनकी चित्र छापी थी। भारत सरकार ने उनके नाम पर एक पोस्टाल स्टैंप भी जारी किया था। उनकी वीरता और साहस को याद रखते हुए, भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित किया और उनके बलिदान को याद रखते हुए वीर अब्दुल हमीद के नाम पर भारत सेना के विभिन्न सैनिक आवासीय समीधी स्थानों को भी रखा गया है।
वीर अब्दुल हमीद का योगदान भारत माता के लिए अमूल्य है, और उनके समर्थन और बलिदान को हम सदैव याद करेंगे। उन्हें वीरता पुरस्कार से सम्मानित करने से हम उनके परिवार और देशवासियों के प्रति आभारी हैं।