रेलवे में बायो टॉयलेट काफी लोकप्रिय हो रहा है। ट्रेनों में बायो टॉयलेट के इस्तेमाल से रेल परिसर की सफाई पर होने वाले भारी-भरकम खर्च में कमी आयी है। पूर्व मध्य रेलवे को इससे सालाना 17.12 करोड़ रुपये की बचत हुई है। ट्रैक पर गंदगी नहीं फैलने से सफाई के साथ मेटनेंस पर होने वाले खर्च में कमी आयी है।
पहले ट्रेनों में बायो टॉयलेट नहीं होने से पूर्व मध्य रेलवे की 5402 किमी रेललाइन पर रोजाना करीब डेढ़ लाख लीटर गंदगी फैलती थी। इससे ट्रैक मेटेनेंस व सफाई पर सालाना 17 करोड़ 12 लाख रुपये खर्च होते थे। बीते पांच जून को हुए अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस पर रेलवे की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगाए गए हैं। इससे अब कोचों से गंदगी पटरियों पर नहीं गिरती है। स्वच्छता में उल्लेखनीय सुधार होने के साथ पटरियों व इसकी फिटिंग का क्षरण भी रोका जा सका है। इससे भारतीय रेलवे को 410 करोड़ की बचत प्रतिवर्ष हो रही है। बायो टॉयलेट लगने से पहले जंक्शन, स्टेशनों के अलावा आउटर की पटरी गंदगी से पटी रहती थी। इसके सफाई में पानी के साथ सफाई कर्मी के पारिश्रमिक पर भारी भरकम रकम खर्च करना पड़ता था।
स्वच्छता से स्टेशनों की बदली तस्वीर
ट्रेनों में बायो टॉयलेट के इस्तेमाल से जंक्शन की तस्वीर बदल गई है। ट्रेनों में बायो टॉयलट नहीं लगे होने से सुबह के दौरान स्टेशन पर गंदगी फैली रहती थी। अब स्थिति बदल गई है। सोनपुर रेल मंडल द्वारा वर्ष 2014 में सबसे पहले मुजफ्फरपुर-यशवंतरपुर एक्सप्रेस में बायो टॉयलेट का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद सुपरफास्ट एक्सप्रेस में बायो टॉयलेट लगाए गए। अब सभी तरह की ट्रेनों में बायो टॉयलेट होने से रेलवे ने स्वच्छता के मामले में सफलता हासिल की।
कहते हैं पदाधिकारी
पूर्व मध्य रेलवे की शत-प्रतिशत ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगाए गए हैं। इससे पटरी को स्वच्छ बनाने में काफी मदद मिली है। सफाई व मेटेनेंस पर होने वाले खर्च में बचत हुई है। इस योजना से रेलवे को काफी फायदा हुआ है।