सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पूरे वर्ष में प्रायः कुल 12 संक्रान्तियाँ होती हैं और प्रत्येक संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है। शास्त्रों में संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है। सूर्य हर महीने अपना स्थान बदल कर एक राशि से दूसरे राशि में चला जाता है। सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करने की प्रक्रिया को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्म में संक्रांति का समय बहुत पुण्यकारी माना गया है। संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफ़ी महत्व है। इस वैदिक उत्सव को भारत के कई इलाकों में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
भारत के कुछ राज्यों जैसे आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, केरल, गुजरात, तेलांगना, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र में संक्रांति के दिन को साल के आरम्भ के तौर पर माना जाता है। जबकि बंगाल और असम जैसे कुछ जगहों पर संक्रांति के दिन को साल की समाप्ति की तरह माना जाता है।
मकर संक्रान्ति मुहूर्त -
- पुण्य काल मुहूर्त : 08 बजकर 03 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट तक
- अवधि : 04 घंटे 26 मिनट
- महापुण्य काल मुहूर्त :- 08 बजकर 03 मिनट से 08 बजकर 27 मिनट तक
- अवधि : 0 घंटे 24 मिनट
संक्रांति का महत्व-
अगर देखा जाये तो संक्रांति का सम्बन्ध कृषि, प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से भी है। सूर्य देव को प्रकृति के कारक के तौर पर जाना जाता है, इसीलिए संक्रांति के दिन इनकी पूजा की जाती है। शास्त्रों में सूर्य देवता को समस्त भौतिक और अभौतिक तत्वों की आत्मा माना गया है। ऋतु परिवर्तन और जलवायु में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव इनकी स्थिति के अनुसार होता है। न केवल ऋतु में बदलाव बल्कि धरती जो अन्न पैदा करती है और जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है, यह सब सूर्य के कारण ही संपन्न हो पाता है।
संक्रांति के दिन पूजा-अर्चना करने के बाद गुड़ और तिल का प्रसाद बांटा जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, संक्राति एक शुभ दिन होता है। पूर्णिमा, एकादशी आदि जैसे शुभ दिनों की तरह ही संक्रांति के दिन की भी बहुत मान्यता है। इसीलिए इस दिन कुछ लोग पूजा-पाठ आदि भी करते हैं। मत्स्यपुराण में संक्रांति के व्रत का वर्णन किया गया है।
जो भी व्यक्ति (नारी या पुरुष) संक्रांति पर व्रत रखना चाहता हो उसे एक दिन पहले केवल एक बार भोजन करना चाहिए। जिस दिन संक्रांति हो उस दिन प्रातः काल उठकर अपने दाँतो कोअच्छे से साफ़ करने के बाद स्नान करें। उपासक अपने स्न्नान के पानी में तिल अवश्य मिला लें। इस दिन दान-धर्म की बहुत मान्यता है इसीलिए स्नान के बाद ब्राह्मण को अनाज, फल आदि दान करना चाहिए। इसके बाद उसे बिना तेल का भोजन करना चाहिए और अपनी यथाशक्ति दूसरों को भी भोजन देना चाहिए।
संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिनों पर गंगा स्नान को महापुण्यदायक माना गया है। माना जाता है कि ऐसा करने पर व्यक्ति को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। देवीपुराण में यह कहा गया है- जो व्यक्ति संक्रांति के पावन दिन पर भी स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक बीमार और निर्धन रहता है।
मकर संक्रांति से जुड़े त्यौहार-
भारत में मकर संक्रांति के दौरान जनवरी माह में नई फसल का आगमन होता है। इस मौके पर किसान फसल की कटाई के बाद इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। भारत के हर राज्य में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
पोंगल-
पोंगल दक्षिण भारत में विशेषकर तमिलनाडु, केरल और आंध्रा प्रदेश में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है। इस मौके पर धान की फसल कटने के बाद लोग खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्यौहार मानते हैं। पोंगल का त्यौहार ’तइ’ नामक तमिल महीने की पहली तारीख यानि जनवरी के मध्य में मनाया जाता है। 3 दिन तक चलने वाला यह पर्व सूर्य और इंद्र देव को समर्पित है। पोंगल के माध्यम से लोग अच्छी बारिश, उपजाऊ भूमि और बेहतर फसल के लिए ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हैं। पोंगल पर्व के पहले दिन कूड़ा-कचरा जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी की पूजा होती है और तीसरे दिन पशु धन को पूजा जाता है।
उत्तरायण-
उत्तरायण खासतौर पर गुजरात में मनाया जाने वाला पर्व है। नई फसल और ऋतु के आगमन पर यह पर्व 14 और 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस मौके पर गुजरात में पतंग उड़ाई जाती है साथ ही पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो दुनियाभर में मशहूर है। उत्तरायण पर्व पर व्रत रखा जाता है और तिल व मूंगफली दाने की चक्की बनाई जाती है।
लोहड़ी-
लोहड़ी विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाने वाला पर्व है, जो फसलों की कटाई के बाद 13 जनवरी को धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर शाम के समय होलिका जलाई जाती है और तिल, गुड़ और मक्का अग्नि को भोग के रूप में चढ़ाई जाती है।
माघ/भोगली बिहू-
असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू यानि भोगाली बिहू पर्व मनाया जाता है। भोगाली बिहू के मौके पर खान-पान धूमधाम से होता है। इस समय असम में तिल, चावल, नरियल और गन्ने की फसल अच्छी होती है। इसी से तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाकर खाये और खिलाये जाते हैं। भोगाली बिहू पर भी होलिका जलाई जाती है और तिल व नरियल से बनाए व्यंजन अग्नि देवता को समर्पित किए जाते हैं। भोगली बिहू के मौके पर टेकेली भोंगा नामक खेल खेला जाता है साथ ही भैंसों की लड़ाई भी होती है।
मकर संक्रांति पर परंपराएं-
हिंदू धर्म में मीठे पकवानों के बगैर हर त्यौहार अधूरा सा है। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने लड्डू और अन्य मीठे पकवान बनाने की परंपरा है। तिल और गुड़ के सेवन से ठंड के मौसम में शरीर को गर्मी मिलती है और यह स्वास्थ के लिए लाभदायक है। ऐसी मान्यता है कि, मकर संक्रांति के मौके पर मीठे पकवानों को खाने और खिलाने से रिश्तों में आई कड़वाहट दूरी होती है और हर हम एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन में आगे बढ़ते हैं। कहा यह भी जाता है कि मीठा खाने से वाणी और व्यवहार में मधुरता आती है और जीवन में खुशियों का संचार होता है। मकर संक्रांति के मौके पर सूर्य देव के पुत्र शनि के घर पहुंचने पर तिल और गुड़ की बनी मिठाई बांटी जाती है।
तिल व गुड़ की मिठाई के अलावा मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। गुजरात और मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में मकर संक्रांति के दौरान पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर बच्चों से लेकर बड़े तक पतंगबाजी करते हैं। पतंगबाजी के दौरान पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से गुलजार हो जाता है।