कोरोना संकट से अभी मुक्ति नहीं मिली है। चिकित्सक समुदाय भी दहशत में है और अपने बचाव के पर्याप्त उपायों में लगा हुआ है। लाॅक डाउन और दूसरे सुरक्षा उपायों के जरिए निपटने में सभी लगे हैं। सरकारी अस्पताल खुले हैं। निजी अस्पताल भी धीरे धीरे खुलते जा रहे हैं। लेकिन छोटे छोटे कई क्लीनिक अभी भी बंद हैं। इस कारण दूर दराज के इलाकों से आने वाले ग्रामीण और शहरी बीमार लोगों की मुश्किलें बढ़ीं हैं। निजी क्लिनिकों में नियमित चेकअप कराने वाले वरिष्ठ नागरिकों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वरिष्ठ नागरिकों ने कहा कोरोना मारे या न मारे नर्सिंग होम इसी तरह बंद रहे तो पुरानी रोग ही मार डालेगी।
कोरोना मरीज मिलने से मच गया था हड़कंप
करोना की दहशत तो पहले से ही छाई हुई थी और चिकित्सक समुदाय भी खुद के सुरक्षा उपायों के नहीं होने के कारण इससे वंचित नहीं था। निजी क्लीनिक बंद कर लिए गए थे। इधर लॉकडाउन में आवागमन बंद होने के बाद कई निजी अस्पताल और क्लीनिक बंद हो गए।
जो अस्पताल खुले हैं उनकेआर्थिक हालात ठीक नहीं
रोगियों की संख्या अस्पतालों में पहुंचने की काफी कम हो गयी है। शहर के एक निजी अस्पताल संचालक की मानें तो पहले प्रतिदिन करीब एक सौ मरीजों की जांच के अलावे कई ऑपरेशन हुआ करते थे। जिससे अस्पताल की आर्थिक स्थिति ठीक थी। लेकिन अभी अस्पताल का खर्च निकालना मुश्किल हो रहा है। कई स्टाफ को छुट्टी दे दी गई है लेकिन दूसरे तरह के खर्च का बोझ कम नहीं हुआ है। अस्पताल की आमदनी में 60 से 70 प्रतिशत की कमी आई है।
वरिष्ठ नागरिकों ने कहा होरही है परेशानी
शहर के वरिष्ठ नागरिक और संघ के नेता गोरखनाथ विमल, कामेश्वर सिंह, शिवजग प्रसाद ने बताया कि वरिष्ठ नागरिकों की सेहत नियमित तौर पर ठीक नहीं होती और इन्हें नियमित चेकअप की जरूरत पड़ती है। इधर निजी क्लीनिकों के बंद रहने के कारण सेहत में गिरावट आ रही है। कई लोग तो दूसरे तरह की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। उन्होंने सभी चिकित्सकों से अपने पेशेंट्स का चेकअप और इलाज करने का आग्रह किया है।