(आशुतोष मिश्रा)जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा में बंधक बनाए गए नागरिकों काे छुड़ाते हुए शहीद हुए सीआरपीएफ जवान देवहरा का लाल संतोष को तीन वर्षीय मासूम बेटा आदर्श ने मुखाग्नि दी। देवहरा पुनपुन नदी घाट पर बेटे को मुखाग्नि देता देखकर वहां मौजूद हजारो लोग फफकर रोने लगे और भारत माता की जय, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए। शहीद संतोष के अंतिम यात्रा में सीआरपीएफ के आईजी राजकुमार, सीआरपीएफ के डीआईजी, डीएम सौरभ जोरवाल, स्थानीय भाजपा विधायक मनाेज शर्मा, पूर्व विधायक डॉ. रणविजय शर्मा समेत सैकड़ों गणमान्य लोग मौजूद रहे। शहीद संतोष तीन भाईयों में दूसरे स्थान पर थे। 2006 में शहीद संतोष सीआरपीएफ के 159वीं बटालियन में बहाल हुए थे।
बेटा पार्थिव शरीर देख समझ भी नहीं पा रहा था क्या हुआ है
हंदवाड़ा में शहीद हुए संतोष के पार्थिव शरीर जैसे ही घर पहुंचा कि घर में कोहराम मच गया। लॉक डाउन के बीच भी खचाखच घर भीड़ से पट गया। हर कोई शहीद का अंतिम दर्शन करना चाह रहा था। चारो तरफ रोने की आवाज, चित्कार व इसी बीच शहीद संतोष का तीन वर्षीय बेटा पार्थिव शरीर देखकर समझ भी नहीं पा रहा था। उसके पापा को क्या हुआ है, आखिर सभी रो क्यों रहे हैं। कभी इस गोदी तो कभी उस गोदी लोग उसे कर रहे थे। इसी बीच कभी वो भी रो रहा था तो कभी खामोश हो रहा था। मौजूद अधिकारियों के आंखों में भी बच्चे को देखकर आंसू छलक पड़े।
आईजी ने भाई के हाथ में सौंपा तिरंगा, रोते हुए कहा-भाई तुम्हारी शहादत पर गर्व है
देवहरा पुनपुन नदी घाट पर चिता सजने के बाद सीआरपीएफ के आइजी राजकुमार व औरंगाबाद एसपी दीपक बरनवाल ने संयुक्त रूप से बड़े भाई के हाथ में तिरंगा सौंपा। ताकि चिता पर तिरंगा लपेटा जा सके। हाथ में तिरंगा लेते ही बड़ा भाई विजय मिश्रा फफककर रोने लगे। रोते हुए कहा हे ईश्वर ये कौन सा दिन दिखाया। लेकिन रोते हुए ये भी कहा- भाई तुम्हारे शहादत पर मुझे गर्व है। मेरा भाई देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया। यह हर किसी को नसीब नहीं होता। मैं अपने भतीजा को भी फौज में अधिकारी बनाकर भेजूंगा। ताकि वो न सिर्फ आतंकियों को ठिकाने लगाए, बल्कि पाक अधिकृत पीओके में भी झंडा लहराने के गौरव प्राप्त करे। उसकी यह बाते सुनकर मौजूद अधिकारी व आम लोगों की आंखें नम हो गई। सीआरपीएफ के साथी जवान भी फफककर रोने लगे। जिन्हें हर कोई देखा।
कार्तिक छठ मेले में छठ करने आए थे शहीद संतोष
शहीद के बड़े भाई विजय मिश्रा ने बताया कि आखिरी बार कार्तिक छठ मेले में संतोष अपने घर आए थे। वह काफी व्यवहार कुशल थे। उनके व्यवहार का हर कोई कायल था। छठ में घाटो की सफाई भी की थी। छठ उन्हें काफी पसंद था। परिजनों से बोले भी थे, अगली बार नए मेहमान के आने के बाद जरूर छठ करूंगा। माता की भक्ति व छठ में उनकी कृपा थी। महादेव के भी आस्था में गहरा विश्वास था। वे बिना पूजा किए खाना नहीं खाते थे। परिजनों की दिनचर्या सुधारने की बाते बताते थे।
शहीद संतोष का चेहरा देखते ही पत्नी दुर्गावती हुई बेहोश
घटना के बाद जैसे ही सीआरपीएफ द्वारा उसके परिजनों को इसकी खबर दी गई। उसके बाद से ही पूरा परिवार का रो-रोकर बुरा हाल है। खासकर आठ माह के पत्नी दुर्गावती बार-बार बेहोश हो रही है। दोपहर 12 बजे जैसे ही शहीद संतोष का शव देवहरा गांव पहुंचा। भारत माता की जय, जब तक सूरज चांद रहेगा, तब तक संतोष तेरा नाम अमर रहेगा यह नारा सुनते ही पत्नी की चित्कार आंगन में गूंजने लगी। इसके बाद शहीद के शव को साथी जवानों ने आंगन में लाया। पहले परिजन, डीएम-एसपी समेत अन्य लोगों ने अंतिम दर्शन किया। फिर पत्नी दुर्गा को पकड़कर घर की महिलाएं दर्शन कराने के लिए लायी। जैसे ही पति शहीद संतोष के चेहरे को देखी, वह छाती पीटकर रोते हुए बोली-आपने वादा पूरा नहीं किया। बोले थे तुम्हारा साथ निभाउंगा। नहीं निभा पाए। लेकिन देश के लिए शहीद हो गए। हमें फक्र है, यह कहकर बेहोश हो गई। इसके बाद घर की महिलाएं उसकी बेहोश पत्नी को उठाकर उसके कमरे में ले गई। पानी की छीटा मारकर होश में किया। फिर पानी पिलाया। लेकिन बार-बार वह बेहोश हाे जा रही थी।