Train Facts: पहले दुनिया भर में ट्रेनें कोयले से चलती थीं, लेकिन समय के साथ बिजली से चलने वाले इंजन आए और अधिकांश ट्रेनें बिजली से चलने लगीं। आपने देखा होगा कि ट्रेन का सीधा संपर्क बिजली के तारों से होता है, जिससे ट्रेन की रफ्तार बढ़ती है। फिर भी, आपके मन में यह सवाल जरूर आता होगा कि जब पूरी ट्रेन लोहे की बनी होती है और सीधा बिजली के तारों से करंट मिलता है, तो यह करंट ट्रेन में बैठे लोगों को क्यों नहीं लगता? चलिए, इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं। इस लेख में हम विस्तार से बताएंगे कि कैसे सीधा बिजली से संपर्क होने के बावजूद ट्रेन में बैठे लोगों को करंट का अनुभव नहीं होता है।
ट्रेन में करंट कैसे नहीं फैलता
हर रोज लाखों लोग ट्रेन से यात्रा करते हैं, और कई यात्रियों के मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि लोहे की बनी ट्रेन में करंट आखिर क्यों नहीं फैलता। इसका कारण यह है कि ट्रेन के इंजन को बिजली का करंट सीधे नहीं मिलता, बल्कि यह पेंटोग्राफ के माध्यम से प्राप्त होता है। पेंटोग्राफ एक उपकरण होता है जो ट्रेन के इंजन के ऊपर लगा होता है और सीधे बिजली के तारों से जुड़ा रहता है।
यही वजह है कि ट्रेन में सीधे करंट का असर नहीं होता। इसे सरल भाषा में समझें तो, इंजन पर लगे पेंटोग्राफ का सीधा संपर्क बिजली के तारों से होता है। पेंटोग्राफ के नीचे इंसुलेटर्स लगे होते हैं, जो करंट को ट्रेन इंजन की बॉडी में प्रवेश करने से रोकते हैं।
भारत की ट्रेनें विदेश तक जाती हैं
भारत की ट्रेनें केवल देश तक ही सीमित नहीं हैं; कुछ ट्रेनें विदेशी यात्रा भी करती हैं। उदाहरण के तौर पर, मैत्री एक्सप्रेस, मिताली एक्सप्रेस, और बंधन एक्सप्रेस जैसी ट्रेनें शामिल हैं। मैत्री एक्सप्रेस भारत और बांग्लादेश के बीच चलती है, और पश्चिम बंगाल के कोलकाता से बांग्लादेश के ढाका तक जाती है। वहीं, बंधन एक्सप्रेस बांग्लादेश और भारत के बीच यात्रा करती है और इसे 2017 में शुरू किया गया था।
मिताली एक्सप्रेस की बात करें तो यह ट्रेन भारत के जालपाईगुड़ी और सिलिगुड़ी से सीधे बांग्लादेश तक जाती है। यह एक साप्ताहिक ट्रेन है, यानी यह सप्ताह में केवल एक बार चलती है। इस ट्रेन द्वारा 513 किलोमीटर का सफर तय किया जाता है, जो एक महत्वपूर्ण रिकॉर्ड है।