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वाराणसी में कब है देव दीपावली, जाने सही तारीख, समय और शुभ मुहूर्त

Dev Deepawali 2023 Date: वाराणसी में, देव दीपावली को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। 84 घाटियों को दीपों से सजाया जाता है, और इस मनमोहक दृश्य को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। इसके अलावा, लगभग 6 महीने से इस दीपोत्सव को देखने के लिए सभी नावों और होटल को एडवांस में बुक कर लिया जाता है।

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हिन्दू धर्म में, देव दीपावली का अत्यंत महत्व है। हर वर्ष, इस पवित्र अवसर को वाराणसी, जो कि एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, में मनाया जाता है। देव दीपावली, जिसे देव दिवाली भी कहा जाता है, भगवान शिव के राक्षस त्रिपुरासुर पर विजय के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। इसलिए इसे त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है, जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

देव दीपावली पर, लोग दीये जलाते हैं - इस दिन लोग गंगा में पवित्र डुबकी लगाते हैं और शाम को मिट्टी के दीपक या दीये जलाते हैं। इस अद्भुत अवसर पर, गंगा के घाटों के अलावा बनारस के सभी मंदिर भी लाखों दीयों से प्रकाशमान होते हैं।

2023 के देव दीपावली के आयोजन की तारीख पर कंफ्यूजन: अपर जिला प्रशासन ने लगभग अंतिम निर्णय ले लिया है। कमिश्नर कौशल राज शर्मा के अनुसार, देव दीपावली का आयोजन 27 नवंबर को होगा। मंगलवार को प्रशासन, पुलिस, पर्यटन के अधिकारी, और आयोजन समितियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक में इसकी आधिकारिक घोषणा होगी। इस बार देवदीपावली महोत्सव की तिथि के संबंध में काशी विद्वत परिषद और आयोजन समितियों के बीच अलग-अलग रायों से असमंजस हो रहा है। मंडलायुक्त ने बताया कि 27 नवंबर को आयोजन पर लगभग सभी समितियों से सहमति मिल चुकी है।

पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 03 बजकर 53 मिनट पर प्रारंभ होगी और 27 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी। इस अनुसार, देव दीपावली का आयोजन 26 नवंबर 2023, रविवार को किया जाएगा।

देव दीपावली 2023 के शुभ मुहूर्त: पंचांग के अनुसार, प्रदोष काल में देव दीपावली का मुहूर्त 26 नवंबर को शाम 05 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। पूजन की अवधि 02 घंटे 39 मिनट होगी।

देव दीपावली को क्यों मनाया जाता है?

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया था। इसके बाद, काशी के मंदिरों और घाटों को देवताओं द्वारा एक उत्सव के रूप में सजाया गया और तब से लेकर आज तक, वाराणसी में दीपावली के निर्धारित समय के बाद पड़ने वाली प्रथम पूर्णिमा तिथि को भव्य रूप से देव दीपावली मनाई जाती है। सालों-साल इस त्योहार का महत्व और बढ़ता जा रहा है, और लाखों के संख्या में दूरदराज से पर्यटक इस ऐतिहासिक पल को देखने के लिए वाराणसी आते हैं।

काशी, उसके घाट, और उसके लोग, सभी सहभागी होते हैं

काशी की देव दीपावली, भगवान शिव को समर्पित है। काशी के लक्खा मेले में शामिल होने वाली देव दीपावली के उत्सव में, काशी के घाट, और काशी के लोगों की सहभागिता ने इसे एक महोत्सव में बदल दिया है। दीपकों और झालरों की रौशनी से रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट, और वरुणा नदी के किनारे स्थित देवालय, भवन, मठ-आश्रम जगमगा उठते हैं।

देवी देवता धरती पर आते हैं

सनातन धर्म में, कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता स्वर्ग लोक से नीचे धरती पर उतर आते हैं। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का संहार करके देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। त्रिपुरासुर के अत्याचारों से मिली मुक्ति और भगवान शिव के इस कृत्य पर सभी देवता अपनी प्रसन्नता जाहिर करने के लिए भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचकर दीप प्रज्वलित करते हैं और खुशियां मनाते हैं।

शहीदों का किया जाता है नमन

देव दीपावली के दिन, दशाश्वमेध घाट पर शहीदों की श्रद्धांजलि के साथ ही आकाशदीप का समापन होता है। गंगा सेवा निधि और गंगोत्री सेवा समिति के आयोजन के तहत जवानों की स्मृति में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही, देव दीपावली का उत्सव आयोजित किया जाता है।

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