Kamakhya Mandir का दौरा कब करना चाहिए, Kamakhya Devi Mandir Ki Puja Vidhi, कामाख्या मंदिर, जो कि Guwahati शहर में स्थित है, एक प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है। यहां लाखों भक्तगण आकर माँ कामाख्या देवी की पूजा करने और उनके दर्शन करने के लिए आते हैं। इसे देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग प्रतिवर्ष यात्रा करते हैं ताकि वे माँ कामाख्या के आशीर्वाद से लाभान्वित हो सकें।
माना जाता है कि वे भक्त जो माँ कामाख्या के प्रति श्रद्धा भाव से दर्शन करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस Mandir का एक विशेषता यह है कि यहां तांत्रिक पूजा भी होती है। इस क्षेत्र में अधिकांश स्थानों पर तांत्रिक विधाओं का पालन करने वाले दर्शकों को देखा जा सकता है।
मित्रों, आज हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएंगे कि कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए। इसके अलावा, हम इस विषय से संबंधित और भी जानकारी प्रदान करेंगे। इसलिए, इस सभी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए कृपया हमारे इस लेख को आखिर तक ज़रूर पढ़ें। चलिए, हम आपको इस विषय में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
जानिए कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए
यदि आप कामाख्या मंदिर जाना चाहते हैं, तो आप साल भर में किसी भी समय कामाख्या मंदिर यात्रा कर सकते हैं। यह मंदिर पूरे साल खुला रहता है। हालांकि, अम्बुबाची मेले के दौरान, तीन दिनों के लिए कामाख्या मंदिर बंद रहता है। इसे माना जाता है कि इन दिनों में माँ कामाख्या मासिक धर्म से गुजरती हैं, इसलिए मंदिर को इन दिनों के लिए बंद रखा जाता है।
उसके बाद, चौथे दिन मंदिर का दरवाजा खोला जाता है और देवी की पूजा अर्चना की जाती है। इसलिए, यदि आप चाहें, तो अम्बुबाची मेले के समय भी कामाख्या मंदिर जा सकते हैं।
इसके अलावा, अगर आप अक्टूबर से मार्च महीने के बीच कामाख्या मंदिर यात्रा करते हैं, तो यह आपके लिए फायदेमंद होगा। क्योंकि इन दिनों, गुवाहाटी में मौसम ठंडा रहता है और अधिक गर्मी भी नहीं होती है। इसलिए, इस समय में आप सुहाने मौसम में कामाख्या मंदिर जा सकते हैं। कामाख्या मंदिर की यात्रा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।
कामाख्या देवी मंदिर का महत्व
कामाख्या मंदिर, देवी के 51 सर्वप्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। जब भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किए थे, तो इन्हीं 51 टुकड़ों को शक्तिपीठ कहा गया। गुवाहाटी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामाख्या मंदिर में ही सती का योनि भाग गिरा था, जिसके कारण कामाख्या मंदिर में देवी सती के योनि की पूजा-अर्चना सदियों से चली आ रही है। यहाँ देवी की कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक योनि आकार का शिलाखंड है।
माता कामाख्या देवी मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती ने भगवान शंकर से विवाह किया था, परंतु इस vivah से माता सती के पिताजी अत्यधिक क्रोधित थे और उसके खिलाफ थे। इनका नाम दक्ष था, जिन्हें हिमायल के राजा के रूप में भी जाना जाता था। एक बार दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था, और इस यज्ञ में माता सती और भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया गया था।
हालांकि, माता सती बिना आमंत्रण के भी उस यज्ञ में पहुँची, जहाँ उन्हें अपने पिता द्वारा किए गए शंकर भगवान के अपमान को सहना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने अपमान को बर्दास्त नहीं किया और यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इसके पश्चात्, शंकर भगवान को इस घटना का पता चला, और वह क्रोधित हो गए और माता सती की देह को अपने हाथों में उठाकर तांडव नृत्य करने लगे।
इस दृश्य को देख भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह को कई टुकड़ों में काट दिया ताकि भगवान शंकर का क्रोध शांत हो सके। माता सती के ये अंग धरती पर अलग-अलग जगह पर गिरे थे।
माता कामाख्या देवी मंदिर पूजा विधि
कामाख्या देवी की पूजा से हमें कई लाभ प्राप्त होते हैं। आप या तो कामाख्या देवी मंदिर जाकर या अपने घर पर भी कामाख्या देवी की पूजा कर सकते हैं।
यदि आप कामाख्या देवी मंदिर जाकर पूजा करते हैं, तो आपको सच्चे मन से धूप, दीप, आदि जलाकर कामाख्या देवी की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद आपको कामाख्या देवी को पुष्प, आदि अर्पित करने चाहिए।
हालांकि, यदि आप अपने घर में कामाख्या देवी की पूजा करते हैं, तो नीचे दी गई विधि के अनुसार पूजा कर सकते हैं।
- कामाख्या देवी की पूजा के लिए सबसे पहले आपको कामाख्या देवी की एक मूर्ति प्राप्त करनी है।
- इसके बाद, मूर्ति को साफ-सुथरी चौकी पर स्थापित करना है।
- इसके पश्चात, धूप, दीप, और पुष्पादि से कामाख्या देवी की पूजा करनी है।
- पूजा समाप्त होने के बाद, आप अपनी मर्जी के अनुसार कन्याओं को अपने घर आमंत्रित करके उनका पूजन करना है।
- कन्याओं के पूजन के बाद, उन्हें भोजन करवाना और उन्हें कपड़े आदि का दान करना है।
- यदि आप चाहें, तो कामाख्या देवी की पूजा के बाद भंडारे का भी आयोजन कर सकते हैं।
- कामाख्या देवी की पूजा और अर्चना के बाद, आप माता के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
माँ कामाख्या देवी पूजा के लाभ
यदि आप कामाख्या देवी की पूजा करते हैं, तो आपको नीचे वर्णित लाभ प्राप्त होता है।
- कामाख्या देवी की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से हमें धन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
- अगर आपके जीवन में विवाह से जुड़ी बाधा उत्पन्न हो रही है, विवाह में अडचनें आ रही हैं, तो ऐसे में आपको कामाख्या देवी की पूजा करनी चाहिए। इससे आपके विवाह में आ रही बाधा दूर होती है।
- कामाख्या देवी की पूजा करने से लंबे समय से चल रहे कानूनी विवादों का अंत होता है और हमें जीत की प्राप्ति होती है।
- कामाख्या देवी की पूजा अर्चना करने से हमारा स्वास्थ्य बना रहता है।
- कामाख्या देवी की पूजा करने से हमारे व्यापार और नौकरी से जुड़ी परेशानियाँ भी दूर होती हैं और इससे हमारे व्यापार में वृद्धि होती है।
निष्कर्ष
मित्रों, आज हमने इस लेख के माध्यम से आपको बताया है कि कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए। इसके अलावा, हमने इस विषय से जुड़ी और भी जानकारी प्रदान की है।
हम उम्मीद करते हैं कि आज का हमारा लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध हुआ होगा। यदि यह आपके काम आया है, तो कृपया इसे आगे साझा करें, ताकि अन्य लोग भी इस महत्वपूर्ण जानकारी से लाभान्वित हो सकें।
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FAQs
कामाख्या देवी मंदिर क्यों मशहूर है?
51 शक्तिपीठों में शामिल कामख्या देवी का मंदिर तंत्र-मंत्र के क्षेत्र में पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह स्थान अघोरियों की साधना और तंत्र-मंत्र साधना का एक तरह से महत्वपूर्ण माना जाता है।
Kamakhya Mandir कब जाना चाहिए?
कामख्या मंदिर की यात्रा के लिए साल में किसी भी दिन को शुभ माना जा सकता है, लेकिन यदि आप देवी का आशीर्वाद शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, तो यहाँ नवरात्रि के समय में जाएं। बता दें कि देवी सती के योनि रूप की पूजा की जाती है, इसलिए यहाँ महिलाएं अपने मासिक धर्म के दौरान भी जा सकती हैं।
Kamakhya का अर्थ क्या है?
कामाख्या को अक्सर तंत्र-मंत्र से जोड़कर देखा जाता है। यह देवी दुर्गा के प्रसिद्ध नामों में से एक है। कामाख्या का सबसे प्रत्यक्ष रूप देवी काली या त्रिपुर सुंदरी है।
स्टेशन से कामाख्या मंदिर तक की कितनी दूरी है?
गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से इस मंदिर की दूरी लगभग 8 किलोमीटर है।
कामाख्या मंदिर में किस देवी की पूजा होती है?
गुवाहाटी के निकट स्थित इस मंदिर में देवी सती के योनि भाग की पूजा की जाती है। क्योंकि यहाँ पर उनके शरीर के टुकड़े होते समय योनि का भाग गिरा था। इस स्थान पर देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक योनि रूपी शिलाखंड स्थापित है।