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शरद नवरात्रि से पहले लगेगा सूर्य ग्रहण, जाने ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यताएँ

Solar Eclipse 2023: शक्ति आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्रि 15 अक्तूबर से शुरू हो रहा है। नवरात्रि पर्व लगातार 9 दिनों तक मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-आराधना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। लेकिन इस वर्ष शारदीय नवरात्रि शुरू होने के ठीक एक दिन पहले, यानी 14 अक्तूबर को, साल का आखिरी सूर्य ग्रहण भी होगा। 

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यह आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर सूर्य ग्रहण होगा। लेकिन इस सूर्य ग्रहण को भारत में नहीं देखा जा सकेगा। भारत में सूर्य ग्रहण नहीं होने के कारण इसका सूतक काल मान्य नहीं रहेगा। भारतीय समय के अनुसार, 14 अक्तूबर की रात को करीब 8 बजकर 30 मिनट से शुरू होगा, जिसका समापन रात 2 बजकर 25 मिनट पर होगा। 

Solar eclipse 2023: तारीख, समय, और स्थान

2023 का आखिरी सूर्य ग्रहण 14 अक्टूबर 2023 रात 08:30 से 02:25 बजे अफ्रीका के पश्चिम, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, पैसिफिक महासागर, अटलांटिक महासागर, और आर्कटिक महासागर में।

सूर्य ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथाएँ

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवता और दानवों के बीच चले युद्ध में दानव राहु ने अमृत पीने का प्रयास किया था। इस दौरान सूर्य और चंद्रमा ने उसे रोका था, जिससे राहु का मुख कट गया और उसे अमृत पीने नहीं दिया गया। यही कारण है कि आज भी राहु ग्रहण के दौरान सूर्य और चंद्रमा को निगलने का प्रयास करता है, लेकिन वह सफल नहीं हो पाता।

एक अन्य कथा के अनुसार, राहु और केतु नाम के दानव थे जो प्रकाश के स्रोतों सूर्य और चंद्रमा को नष्ट करना चाहते थे। उनकी इस योजना को समझकर देवताओं ने विष्णु की सहायता ली और विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर राहु और केतु को भ्रमित कर दिया ताकि वे सूर्य और चंद्रमा को नुकसान ना पहुंचा सकें। 

ग्रहण के धार्मिक मान्यताएँ

ग्रहण के साथ-साथ कई प्रकार की मान्यताएं जुड़ी हैं। आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार, जहां-जहां पर सूर्य ग्रहण दिखाई देता है, वहीं पर ग्रहण के आरंभ से ठीक 12 घंटे पहले सूतक काल प्रारंभ हो जाता है। सूतक काल को अशुभ माना जाता है, और इस समय किसी भी शुभ कार्य का आयोजन विरोधित होता है। 14 अक्तूबर को होने वाला सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इस कारण भारत में सूतक काल का पालन नहीं किया जाएगा।

ग्रहण के दौरान सावधानियाँ

ग्रहण के दौरान कई बातों का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है:

  • ग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि मान्यता है कि इस समय खाया हुआ भोजन विषैला हो जाता है
  • गर्भवती महिलाओं को ग्रहण काल में बाहर नहीं निकलना चाहिए 
  • इस दौरान धार्मिक क्रियाकलाप, जप-तप, दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है
  • ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान-दान आदि से खुद को पवित्र करना चाहिए

सूतक काल में पूजा-पाठ करना निषिद्ध है

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सूतक काल को अशुभ माना जाता है। ग्रहण से पहले, सूतक काल प्रारंभ हो जाता है, और इस समय में पूजा-पाठ, नए काम की शुरुआत, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेउ, और विवाह जैसे शुभ संस्कार नहीं किए जाते हैं। सूतक काल के आरंभ पर, मंदिरों के परदे और दरवाजे बंद किए जाते हैं, और इस समय मंत्रों का लगातार जाप करना अनिवार्य होता है।

ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं

  • हिन्दू धर्म के अनुसार, सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या तिथि पर होता है, जबकि चंद्र ग्रहण पूर्णिमा तिथि पर होता है।
  • ग्रहण लगने की मान्यताएँ राहु के साथ जुड़ी होती हैं, जिसमें राहु जब सूर्य और चंद्रमा को अपने ग्रास में लेता है, तो इसे ग्रहण कहा जाता है।
  • जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा सभी एक सीधी रेखा पर आते हैं और पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है, तो सूर्य की पूर्ण या आंशिक रौशनी धरती पर पहुँचती नहीं है, और इसी घटना को सूर्यग्रहण कहा जाता है।

ग्रहण का प्रभाव और सावधानियाँ  

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहण का सूर्य, चंद्रमा और नक्षत्रों पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए ग्रहण के समय कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए:

  • ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ, जप, हवन, दान आदि करने से बचें
  • भोजन न करें और पानी को ढंक कर रखें
  • शरीर में किसी भी प्रकार का छेदन न करें
  • उपवास रखना लाभदायक रहता है
  • गर्भवती महिलाएं घर से बाहर न निकलें
  • ग्रहण के बाद स्नान-दान करके खुद को पवित्र करें

इस प्रकार, ग्रहण के पहले और बाद में विशेष सावधानियां बरतने से इसके नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है। 

नवरात्रि पर ग्रहण का प्रभाव

इस बार नवरात्रि पर्व पर पड़ने वाला ग्रहण विशेष रूप से प्रभावशाली है। नवरात्रि के दौरान देवी पूजा में लगने वाला ग्रहण शुभ नहीं माना जाता है।

ऐसे में पूजा-अर्चना में व्यवधान ना आने देने के लिए ग्रहण के समय से पूर्व या उसके बाद में पूजा करना उचित होगा। ग्रहण के दौरान मंत्र-जाप न करें और देवी मां की पूजा में लगे रहें। ऐसा करने से इस बार के नवरात्र अधिक फलदायी होंगे।

ग्रहण का आध्यात्मिक पक्ष

ग्रहण के कुछ आध्यात्मिक पहलू भी हैं जिन्हें समझना ज़रूरी है: 

  • यह समय आत्मचिंतन और ध्यान-धारणा के लिए उपयुक्त होता है
  • ग्रहण के दौरान ईश्वर का ध्यान करने से मन की शांति मिलती है
  • यह समय अपने कर्मों का मूल्यांकन करने और आगे के लिए योजना बनाने का होता है
  • ग्रहण ईश्वर की लीला का प्रतीक है जिससे हमें जीवन की अस्थायिता का बोध होता है

सूर्य ग्रहण के बाद चंद्र ग्रहण भी

14 अक्तूबर को सूर्य ग्रहण के बाद, साल का आखिरी चंद्र ग्रहण भी आयेगा। इस चंद्र ग्रहण की घड़ी 28 अक्तूबर को पूर्णिमा तिथि पर आएगी। यह एक आंशिक चंद्रग्रहण होगा और भारत में देखा जा सकेगा। भारतीय समय के अनुसार, 28 अक्तूबर की मध्यरात्रि के 01:06 बजकर से लेकर 02:22 बजकर तक चंद्रग्रहण होगा।

सौर ग्रहण 2023: ज्योतिष उपाय

माना जाता है कि सूर्य ग्रहण के प्रभाव से छः महीने तक प्रभावित रह सकता है। लेकिन उचित सुधारक उपाय और ज्योतिषगणों के साथ थोड़ी सी मार्गदर्शन से आपको अनिष्ट प्रभावों और अन्य समस्याओं से बचा सकता है। हमारे पास 2023 के सौर ग्रहण के नकारात्मक प्रभावों को दबाने में मददगार साधनाएँ और ज्योतिषीय समाधान हैं:

  • एक श्वेतार्क पेड़ लगाएं और नियमित रूप से इसकी देखभाल करें। यदि आप खुद पानी दें, तो यह बेहतर होगा। पौधे को अपने परिवार की तरह समझें और उसकी देखभाल सही से करें।
  • 2023 के सौर ग्रहण के दौरान, आप दान कर सकते हैं। इसका माना जाता है कि इससे घटना के अनिष्ट प्रभाव दूर हो जाते हैं।
  • यदि आपके कुंडली में किसी अनुष्ठान ग्रह सूर्य है, तो सूर्य अष्टकम स्तोत्र का पाठ करके इस ग्रह को मजबूत करें।
  • इसके अलावा, आपको अपने पिता के प्रति समर्पित और आज्ञाकारी होना चाहिए, विशेषकर 2023 के सौर ग्रहण के चारों ओर।
  • आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी एक श्रेष्ठ उपाय है, सौर ग्रहण के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए।

आशा है इस लेख ने आपको नवरात्रि से पूर्व होने वाले सूर्य ग्रहण और उससे जुड़ी मान्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान की होगी। ग्रहण का सकारात्मक रूप से उपयोग करते हुए आइए इस नवरात्रि को और भी खास बनाएँ। 

नवरात्रि की शुभकामनाएँ!

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