Type Here to Get Search Results !

Recent Gedgets

Trending News

शिवलिंग पर आज भी हैं कई चोट के दाग, अंग्रेजों के शासनकाल में निर्मित हुआ था यह मंदिर

गाजीपुर जनपद में स्थित सेवराई तहसील के भदौरा ब्लॉक के अंतर्गत देवकली गांव में स्थित प्राचीन शिव मंदिर लोगों की आस्था और विश्वास का महत्वपूर्ण केंद्र है। इस मंदिर को अंग्रेजों के शासनकाल में निर्मित किया गया था, और इसकी चमत्कारिक घटनाओं की कहानियाँ आज भी लोकप्रिय हैं। इस मंदिर के प्रति कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनसे यह प्रतित होता है कि यहाँ की शिवलिंग स्वयंभू है।

even-today-there-is-a-mark-of-injury-on-the-shivling-this-temple

पौराणिक कथाओं के अनुसार, पहले इस गांव में चारों तरफ जंगल फैला हुआ था। एक किस्से के अनुसार, गंगा नदी के पार शेरपुर गांव से एक ग्वाला की गाय दूध देने के लिए प्रतिदिन गंगा नदी को पार कर देवकली गांव आती थी। इससे ग्वाला परेशान था। एक दिन, गाय अपने पीछे-पीछे गंगा नदी को पार करके गयी। जब वह देखी कि उसका दूध भूमि में बिखर गया और शिवलिंग पर गिर रहा है, तो उसने खुद से लिए टांगी लाकर बिलकुल लाख की तरह जमीन को पीटने लगा। 

इससे शिवलिंग को भी नुकसान हुआ। तब भगवान शिव ने उसके सपने में आकर उसे दर्शन दिखाए। आज भी इस किस्से की याद रखने के लिए, शिवलिंग में खुदाई के निशान देखे जा सकते हैं। मंदिर में शिवलिंग भूमि से 6 फीट नीचे दबा हुआ है। विश्वास है कि भगवान शंकर हर एक विश्वासवान मन्नत को पूरा करते हैं, जो मंदिर में सच्चे मन से मांगी जाती है।

रातों रात मंदिर के प्रवेश द्वार पूर्व से पश्चिम की ओर खुल गया

अंग्रेजों के शासनकाल में, मंदिर के पास ही रेलवे लाइन बिछाई जा रही थी। गांव के लोगों ने इसका विरोध किया, तो रेलवे कर्मचारियों ने उनसे कहा कि रेलवे लाइन मंदिर के पास ही बिछाई जाएगी। यदि शिव में शक्ति है, तो मंदिर का प्रवेश द्वार किसी अन्य दिशा में खुल जाएगा। कहते हैं कि उसी रात मंदिर के पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर द्वार खुल गया। इसके बाद से, मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर हो गया। इससे अंग्रेज भी भगवान भोले शंकर के सामने नमस्ते करने लगे। रेलवे लाइन को भी गांव की पूर्व दिशा की ओर मोड़ दिया गया। यह रेलवे लाइन पंडित दीनदयाल उपाध्याय हावड़ा मार्ग पर देवकली गांव के पास से गुजरती है।

सावन मास में जलाभिषेक प्रतियोगिता का होता है आयोजन

श्रावण मास में आयोजित होने वाली जलाभिषेक प्रतियोगिता का आयोजन मन्दिर समिति द्वारा किया जाता है। इस कार्यक्रम में श्रद्धालुओं द्वारा गहमर के नरवा गंगा घाट से स्नान के बाद जल भरकर सबसे पहले भगवान भोले शंकर को जलाभिषेक करने की परंपरा होती है। प्रथम, द्वितीय, और तृतीय श्रद्धालुओं का चयन करके उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। मंदिर के पुजारी शिवशंकर गिरी ने बताया कि पहले मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर होता था और मंदिर उस समय बहुत छोटा था, लेकिन अब उसका विस्तार हो चुका है। आस-पास के दूर-दराज के श्रद्धालुभी इस मंदिर से जुड़े हुए हैं। सावन मास में बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस कार्यक्रम में भाग लेते हैं और भगवान भोले शंकर को जल से अभिषेक करते हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad