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जानें भगवान परशुराम मंदिर के बारे में, हरपुर जमानियां, जनपद गाजीपुर

जनपद गाजीपुर के जमानियां तहसील का नाम जमदग्नि ऋषि के नाम पर पड़ा हुआ है। महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली और भगवान परशुराम की जन्मस्थली के नाम से ज़मानिया ख्यात हैं। नगर पालिका के हरपुर में एनएच 24 किनारे भगवान परशुराम का मंदिर स्थित है। मान्यता है कि ढाई सौ वर्ष पूर्व से सकलडीहा कोट के तत्कालीन राजा वत्स सिंह ने पूर्ण धार्मिक अनुष्ठान के साथ भगवान परशुराम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की थी। इसके बाद से नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ यूपी, बिहार, एमपी और अन्य प्रांतों के लोग यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

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कहा जाता है कि राजा वत्स की रियासत जमानियां में होने के कारण वे यहां आते थे। एक रात्रि में भगवान परशुराम स्वप्न में आकर उनसे कहा कि मेरे पिता यमदग्नि के आश्रम के सामने गंगा के बीच में मेरी मूर्ति है, जिसे निकालकर 360 धनुष की दूरी पर स्थापित करें, ताकि क्षेत्र का कल्याण हो सके। सुबह ही राजा ने मछुआरों की मूर्ति निकालवाई। उसके बाद राजा ने 360 धनुष की दूरी को मापा और नगर पालिका क्षेत्र में हरपुर विधानसभा क्षेत्र में राजा ने अनुष्ठान के साथ भगवान परशुराम की मूर्ति को स्थापित कर मंदिर बनवाया।

मंदिर अष्टकोणीय है

एनएच-24 किनारे हरपुर में स्थित मंदिर कई मामलों में अनूठा है। यह मंदिर अष्टकोणीय और पंचायतन स्वरूप है। राजा वत्स ने मंदिर के पूर्वी कोने में भगवान गणेश, पश्चिमी कोने में भगवान सूर्य नारायण, उत्तरी कोने में मां भगवती के साथ पूर्व-उत्तरी कोने में भगवान शंकर की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की थी। इन चारों देवी-देवताओं के बीच भगवान परशुराम की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर का क्षेत्रफल दो बीघा है।

श्रद्धालुओं को तांता लगता है 

त्रेता युग से लेकर कलियुग तक कई शताब्दियों के इस सफर में आज भी हरपुर में परशुराम जयंती के दिन श्रद्धालुओं का तांता लगता है। स्थानीय लोगों के मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म यमदग्नि ऋषि के आश्रम में हुआ था। इस कारण उनकी जयंती पर दूरदराज से लोग दर्शन को आते हैं। महिलाएं ढोल-मजीरा और गाजे-बाजे के साथ मंगल गीत गाती हैं, और पुरुष हवन-पूजन करके स्मरण करते हैं। श्रद्धालु सुबह भोर तीन बजे से ही कतार में दर्शन के लिए लग जाते हैं।

मेले के साथ चेतक प्रतियोगिता

मंदिर के पास मेला आयोजित होता है। भगवान परशुराम समिति हरपुर की ओर से इस दिन चेतक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है, जिसमें प्रदेश के साथ-साथ मध्य प्रदेश और बिहार सहित आसपास के क्षेत्रों से घोड़े भी पहुंचते हैं।

धार्मिक पर्यटन के पहलू से महत्वपूर्ण

भगवान परशुराम का मंदिर धार्मिक पर्यटन के पहलू से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि इस मंदिर को सुंदर बनाया जाए, तो यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। पूर्व में पर्यटन विभाग ने मंदिर का सुंदरीकरण कराया, फिर भी इसकी गरिमा पूरी तरह से नहीं उजागर हुई।

महर्षि यमदग्नि ऋषि का मंदिर बलुआ घाट पर

भगवान परशुराम के पिता यमदग्नि ऋषि का मंदिर बलुआ घाट पर स्थित है, जहां नियमित लोग पूजन-अर्चन करते हैं। मान्यता है कि यमदग्नि ऋषि के दर्शन के लिए मां गंगा उत्तर वाहिनी हो गईं, आज भी मां गंगा यमदग्नि ऋषि के आश्रम के किनारे से बहती हैं। मन्नत पूरी होने पर लोग रामायण, कीर्तन करा कर विधि पूर्वक पूजन-अर्चन करते हैं।

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