अनरसा बारिश के मौसम की प्रमुख मिठाई है। गाजीपुर जिले के मखदुमपुर का अनरसा कभी पूरे पूर्वांचल में मशहूर था। लेकिन पिछले कुछ समय से अब इसकी मांग कम हो गई है। दरअसल बदलते दौर में अनरसा के तलबगार कम हो गए हैं। जब मिठाई की ही पूछ नहीं रही, तो मखदुमपुर का अनरसा भी कितने दिनों तक अपनी साख बचाए रखता है।
पहले बरसात की दिनों में अनरसा ही प्रमुख मिठाई था। तीज-त्योहारों पर लोग अपने रिश्तेदारों के यहां अनरसा ही भेजते थे। इसमें मखदुमपुर का अनरसा तो सबसे लजीज माना जाता था। चावल के आटे से बनने वाली यह मिठाई बरसात के दिनों में खराब नहीं होती थी। लेकिन समय के साथ-साथ खानपान का तरीका भी बदल गया। तो अब अनरसा की मांग भी कम हो गई है।
कई जिलों में जाता था मखदूमपुर का अनरसा। पहले मखदूमपुर बाजार में दस से 15 परिवार इसे बनाते थे। चावल का आटा, सफेद तिल, शक्कर-गुड़ और घी-रिफाइन से तैयार की गई यह मिठाई बनाने में परिवार के चार से पांच सदस्य लगते थे। सुबह होते ही बड़ी-बड़ी टोकरियों में लादकर व्यापारी गाड़ी से जौनपुर, आजमगढ़, वाराणसी, मऊ, चिरैयाकोट तक जाते थे। मगर खोवे और छेने की मिठाइयों ने इस पारंपरिक मिठाई को ढकेल दिया।
मांग कम हुई तो मखदूमपुर में अनरसा बनाने वाले भी इस मिठाई के निर्माण से अलग होते गए। इस समय मात्र चार से पांच परिवार ही अनरसा बनाने के व्यवसाय में लगे हुए हैं। मखदूमपुर बाजार में अनरसा व्यवसायी योगेश गुप्ता ने बताया कि यह हम लोगों का पुश्तैनी व्यवसाय हैं। वर्षों पहले जितनी बिक्री होती थी, वर्तमान में उसकी आधी बिक्री भी नहीं हो पाती। चावल के दाम में वृद्धि हुई है, लेकिन अनरसा का भाव पुराना ही है। अनरसा की कीमत 100 रुपये प्रति किलो है। मगर गुड़ वाला अनरसा बाजार से गायब होता जा रहा है।
महंगू गुप्ता और राधेश्याम गुप्ता बताते हैं कि मिठाई बनने में जितनी मेहनत लगती है, उसके हिसाब से लाभ कम होता है। लिहाजा लोग इसे छोड़ते जा रहे हैं। बाजार में तरह-तरह की मिठाइयां आ गई हों, लेकिन सावन माह में बहू-बेटियों को तीज-त्योहार भेजते समय लोगों को अनरसा की याद आ ही जाती है।