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गाजीपुर जिले में आस्था का केंद्र है सायर माँ का मंदिर

हेल्लो दोस्तों, आज मैं आप लोगो को दिलदारनगर सायर माँ का मंदिर के बारे में विस्तार से बतायेगे। आइये जानते है, सायर माँ का मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में ग़ाज़ीपुर जनपद के दिलदारनगर रेलवे स्टेशन पर स्थित है जो कि ग़ाज़ीपुर जिले से लगभग 25 किलोमीटर कि दूरी पर है। दिलदारनगर स्थानीय रेलवे स्टेशन के मध्य में दो लाइनों के बीच स्थित सायर माँ के चौरा पर दर्शन-पूजन करने के लिए जिले ही नहीं वरन दूर-दराज व अन्य जिलों से भी श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी है।  

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इस मंदिर की अलौकिक शक्तियां काफी प्रचलित हैं। सायर माँ की महिमा सदाफलदायी है। इसलिए प्रत्येक साल वासंतिक और शारदीय दोनों नवरात्रों में माता के भक्त यहां हाजरी लगाने के लिए अवश्य पहुंचते हैं। यह मंदिर दो रेल पटरियों के बीच में स्थित है जो कि सायर माता के चौरा की किवदंतियां भी काफी प्रचलित हैं।

जब अंग्रेजी शासन काल में प्लेटफार्म संख्या 4 अप लुप लाइन को बिछाने के दौरान अंग्रेज रेल इन्जीनिर जिसे उस समय उन्हें लोग द्वारा प्लेटियर साहब के नाम से जाना जाता था, वह अपने मातहतों को रेलवे स्टेशन के पास झाड़ और जंगल की सफाई के लिए कहा। रेल लाइन बिछाने के लिये की जा रही जंगलों की कटाई के दौरान एक विशालकाय नीम के पेड़ के नीचे मिट्टी की एक छोटी सी पिंडी दिखाई पड़ी।

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इस बात की जानकारी काम करने वाले मजदूरों ने अपने अधिकारी को दी। मजदूरों की बात अनसुनी करते हुए पेड़ को काटने का आदेश दिया। जब मजदूरों ने पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी चलाई, तो उस तने से खून जैसा लाल द्रव्य निकलने लगा। यह देख मजदूर वहां से भाग खड़े हुए और जिन पांच मजदूरों ने पेड़ काटने का प्रयास किया था, उनकी बिना किसी बजह के ही मौत हो गयी। 

फिर भी अधिकारी इसे अंधविश्वास मानकर खुद नीम का पेड़ काटने का प्रयास किया। तब देवी के प्रकोप से उसका पांच वर्षीय पुत्र उसी रात मर गया। इसके बाद दूसरे दिन माता ने उस अंग्रेज अधिकारी को नीम पर अपना वास होने का स्वप्न दिखाते हुए उसे ऐसा करने से मना किया। उस अंग्रेज अधिकारी ने यह सारी बात अपनी पत्नी को बतायी, लेकिन नीम के पेड़ को काटने की जिद पर अड़ा रहा। तब पत्नी ने काफी समझाया।

इसके बाद अधिकारी मान गया और वहां से लाइन को टेढ़ा बिछाने का फैसला लिया। अंग्रेज इंजीनिर के पुत्र का पीडब्लूआई बंगला परिसर में मौजूद कब्र, शायर माता की शक्ति का प्रमाण आज भी मौजूद है। मंदिर के महंत लालजी पाण्डये ने बताया कि माता के चमत्कार के जानने के बाद ग्रामीणों का हुजूम दर्शन के लिए पहुंचने लगा।

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इसके बाद से धीरे-धीरे माँ की महिला का प्रचार-प्रसार दूर-दूर तक होता गया और अब ग़ाज़ीपुर जनपद/Ghazipur District के लोग ही नहीं, वरन पूर्वांचल सहित बिहार, बंगाल, झारखंड प्रांत से भी श्रद्धालु यहां आकर श्रद्धापूर्वक माता के चौरा का पूजन-पाठ करते हैं। वर्षों से इस मंदिर की देखभाल पूर्व प्रधान प्रेमसिंह यादव के वंशज करते आ रहे हैं। प्रसाद की व्यवस्था दिलदारनगर बाजर के श्याम बाबू की तरफ से होता है।

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