लोगों को बेहतर स्वास्थ्य की सुविधा देने के तमाम दावे किए जा रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। हालत यह है कि रेवतीपुर जैसे बड़े गांव जहां पर करीब दो लाख की आबादी है वहां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टरों का टोटा है। इससे मरीज मायूस होकर बिना इलाज कराए लौट रहे हैं यां निजी अस्पतालों में महंगे इलाज कराने को मजबूर हैं। जिले में एशिया के सर्वाधिक मतदाताओं वाला गांव हैं रेवतीपुर।
यहां पर ब्लॉक भी है जिसमें 46 ग्राम पंचायतें आती हैं। अकेले रेवतीपुर गांव में ही सवा दो लाख के करीब आबादी है। इसके बावजूद लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। हालत यह है कि यहां पर डॉक्टरों के छह पद स्वीकृत हैं जिसमें से तीन खाली हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम अभियान चलाए जाते हैं लेकिन यहां महिला रोग विशेषज्ञ तक नहीं है।
गर्भवती महिलाएं जिला महिला अस्पताल में जाती हैं या तो निजी अस्पताल में इलाज कराती हैं। यही नहीं बाल रोग विशेषज्ञ की भी तैनाती नहीं है। मजबूरी में लोग यहां आते हैं लेकिन अधिकतर केस में निराश होकर निजी अस्पतालों में जाकर मंहगे जांच कराते हैं। इतने आबादी व गांवों से जुड़ा होने के बाद भी यहां पर स्थायी चिकित्सा अधीक्षक तक तैनात नहीं किया गया है। हालत यह है कि मुहम्दाबाद के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर आशीष राय को अतिरिक्त प्रभार दिया गया हैं लेकिन वह अस्पताल में बैठते ही नहीं है।
इस संम्बध में पूछने पर प्रभारी चिकित्सा अधीक्षक डाक्टर आशीष राय का कहना था कि डाक्टरों की तैनाती करना हमारा काम नहीं है। हमें रेवतीपुर का अतिरिक्त प्रभार केवल प्रबंधन के लिए दिया गया है। यहां क्या हो रहा है उससे हम कोई मतलब नहीं है। इलाज कराने पहुंचे ग्रामीणों ने बताया कि सीएचसी में डॉक्टर समय पर बैठते ही नहीं है। दस बजे के बाद ही डॉक्टर आते हैं और दो बजे से पहले ही निकलने लगते हैं। उन्होंने बाहर से दवाए लिखने की भी बात कही। लोगों ने बताया कि स्वास्थ्य सम्बन्धित जन शिकायतों के निस्तारण के लिए यहां आने पर पता चलता है कि प्रभारी चिकित्सा अधीक्षक का कार्यालय बंद है।