एशिया के सबसे बड़े गांव में शामिल गहमर स्थित आदि शक्ति मां कामाख्या धाम पूर्वांचल के लोगों के आस्था एवं विश्वास का केंद्र है। शक्ति पीठों में अलग महत्व रखने वाला यह धाम अपने आप में तमाम पौराणिक इतिहास समेटे हुए है। मां कामाख्या भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती है। यहां नवरात्रि में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है।
सैनिक बाहुल्य गांव के नाम से मशहूर गहमर के करीब 25000 से अधिक लोग सेना में अपनी सेवा दे रहे हैं। सभी सैनिक ड्यूटी पर जाने से पूर्व मां कामाख्या देवी दरबार में हाजिरी लगाकर ही जाते हैं और लौटते वक्त पहले मां कामाख्या का दर्शन कर ही घर जाते हैं। लोगों में यह मानता है कि मां कामाख्या के आशीर्वाद से अधिकांश सैनिक सेना में होने के बावजूद देश की रक्षा में तैनात आज तक कोई भी सैनिक हताहत नहीं हुआ है। किसी भी सैनिक की युद्ध के दौरान मौत नही हुई। कहा जाता है कि माँ कामाख्या सीमा पर भी सैनिकों की रक्षा करती है।
विश्वामित्र ने यहां एक महायज्ञ भी किया था
पौराणिक मान्यता है कि यहां जमदग्नि, विश्वामित्र सरीखे ऋषि-मुनियों का सत्संग समागम हुआ करता था। विश्वामित्र ने यहां एक महायज्ञ भी किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने यहीं से आगे बढ़कर बक्सर में ताड़का नामक राक्षसी का वध किया था। मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि पूर्व काल में फतेहपुर सिकरी में सिकरवार राजकुल पितामह खाबड़ जी महाराज ने कामगिरी पर्वत पर जाकर मां कामाख्या देवी की घोर तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न मां कामाख्या ने कालांतर तक सिकरवार वंश की रक्षा करने का वरदान दिया था।
गैर जिलों और प्रान्तों के भक्तों की भीड़ उमड़ती है
वर्ष 1840 तक मंदिर में खंडित मूर्तियों की ही पूजा होती रही। 1841 में गहमर के ही एक स्वर्णकार तेजमन ने मनोकामना पूरी होने के बाद इस मंदिर के पुर्ननिर्माण का बेड़ा उठाया। वर्तमान समय में मां कामाख्या सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां मंदिर परिसर में स्थापित है। शारदीय एवं वासंतिक नवरात्र में जिला सहित गैर जिलों और प्रान्तों के भक्तों की भीड़ उमड़ती है। ऐसी मान्यता है कि मां के दरबार से कोई भक्त खाली नहीं जाता। उसकी हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है।