गाजीपुर जिले में दिलदारनगर रेलवे स्टेशन के मध्य दो लाइनों के बीच स्थित सायर माता के चौरा पर दर्शन-पूजन करने के लिए जनपद ही नहीं वरन दूर-दराज व अन्य जनपदों से भी श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी है। सेवराई तहसील क्षेत्र के दिलदारनगर जंक्शन पर प्लेटफार्म नम्बर 3 और 4 के मध्य में विराजमान लोक आस्था की प्रतीक सायर माता मंदिर की अलौकिक शक्तियां काफी प्रचलित हैं। यूं तो भक्तों के आने जाने का क्रम पूरे वर्ष वासंतिक व शारदीय नवरात्र में माता के भक्त यहां हाजिरी लगाने के लिए अवश्य पहुंचते हैं। दो रेल ट्रैक के बीचों बीच स्थित सायर माता के मंदिर की किवदंतियां भी काफी प्रचलित हैं।
लोग यहां आकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मन्नते मांगते है तो बहुत से लोग अपनी मन्नतें पूरी होने के बाद दर्शन पूजन करने आते हैं। यूपी, बिहार, बंगाल एवं दूर दराज से लाखों श्रद्धालु सायर माता के दर पर मत्था टेकने के लिए आते है और मां के दरबार में अपनी हाजिरी दर्ज कराते हैं। कहा जाता है कि जब अंग्रेजी शासन काल में दिलदारनगर रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म नम्बर 4 के लिए पटरी बिछाने का कार्य प्रारम्भ किया गया। इस कार्य को कराने की जिम्मेदारी चीफ इंजीनियर प्लेटीनर को दी गयी थी।
इस नई पटरी को बिछाने के लिए जब मजदूर झाड जंगल को साफ कर रहे थे तो उन्होंने एक विशालकाय नीम के पेड़ के नीचे एक छोटी सी मिट्टी की पिंडी दिखाई दी। मजदूरों ने इसकी जानकारी अपने अधिकारी को दी। इंजीनियर ने मजदूरों की बात अनसुनी करते हुए पेड़ को काटने का आदेश दिया। जब मजदूरों ने पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी चलाई, तो उसके तने से खून जैसा लाल द्रव्य निकलने लगा तभी काम कर रहे सभी मजदूरों ने ऐसा करने से साफ साफ मना कर दिया। तब इंजीनियर प्लेटीनर साहब ने दूसरे मजदूरों से पेड़ कटवा दिया।
मान्यता है कि मजदूर ने पेड़ पर कुल्हाड़ी की पहली चोट लगते ही नीम के पेड़ से रक्त जैसा तरल पदार्थ निकलने लगा था। यह देख मजदूर वहां से भाग खड़े हुए, और जिन पांच मजदूरों ने पेड़ काटने का प्रयास किया था, उनकी बिना किसी कारण के ही मौत हो गयी। फिर भी अधिकारी इसे अंधविश्वास मानकर खुद नीम का पेड़ काटने का प्रयास किया। तब देवी के प्रकोप से पेड़ काटने वाले सभी मजदूरों और इंजीनियर के पांच वर्षीय पुत्र की उसी रात मौत हो गयी थी। इंजीनियर प्लेटीनर साहब के पांच वर्षीय पुत्र का मकबरा आज भी पी डब्ल्यूआइ के बंगले में मौजूद है। दूसरे दिन माता ने उस अंग्रेज अधिकारी को नीम के पेड़ पर अपना वास होने का स्वप्न दिखाते हुए उसे ऐसा करने से मना किया।
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अंग्रेज अधिकारी यह सारी बात अपनी पत्नी को बतायी, लेकिन नीम के पेड़ को काटने की जिद पर अड़ा रहा। तब पत्नी ने काफी समझाया। इस प्रकार ट्रैक बिछाने के काम में तरह तरह की रूकावटे आने लगी। मजदूर पिंडी को हटाकर जितना पटरी बिछाते थे, दूसरे दिन वह जस का तस हो जाता था। तत्कालीन धर्म गुरुओं की सलाह पर इंजिनियर ने पीडब्ल्यूआइ परिसर में माँ के लिए एक मंदिर का निर्माण कराया, जो बाद में उपेक्षित हो गया।
इंजीनियर प्लेटीनर भी बीमार हो गया तो उनकी पत्नी ने माता सायर से अनुनय विनय करते हुए माफी मांगी और अपने पति के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हुए पिंडी मिलने के स्थान पर ही सायर माता का चौरा बनवाया। तब जाकर उसके इंजीनियर प्लेटीनर पति का प्राण बचा और फिर वहां से ट्रैक लाइन को टेढ़ा बिछाने का कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न हो गया। आज भी मुगलसराय दानापुर रेलखंड के दिलदारनगर रेलवे स्टेशन पर दो रेल ट्रैकों के मध्य ममतामयी सायर माता का मंदिर विराजमान है। मान्यता है कि माता सायर के चौखट पर भक्तों के द्वारा सच्चे मन से मांगी गयी हर मुराद सायर माता की कृपा से अवश्य पूरी होती है।
अंग्रेज इंजीनियर प्लेटीनर के पुत्र का पीडब्लूआई बंगला परिसर में मौजूद कब्र, सायर माता की शक्ति का प्रमाण आज भी मौजूद है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि माता के चमत्कार के जानने के बाद ग्रामीणों का हुजूम दर्शन के लिए पहुंचने लगा। इसके बाद से धीरे-धीरे माता की महिमा का प्रचार-प्रसार दूर-दूर तक होता गया और अब जिले के लोग ही नहीं, वरन पूर्वांचल सहित बिहार, बंगाल, झारखंड प्रांत से भी श्रद्धालु यहां आकर श्रद्धापूर्वक माता के चौरा का पूजन-पाठ करते हैं। भक्त अपनी मुराद पूरी होने पर मां के मंदिर में घंटी बांधते है और मंदिर के फर्श में चांदी का सिक्का जडवाते है। वर्षों से इस मंदिर मैं श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है नवरात्र के दिनों में यहां रात्रि जागरण भी होता है।