अक्सर देखा गया है की किसान अपने धान की फसल को काटने के पश्चात उसके अवशेषों को अपने खेतो में ही जला देते हैं, जिससे न केवल पर्यावरण पर इसका बुरा असर पड़ता है। बल्कि मृदा के स्वास्थ पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कृषि विज्ञानं केन्द्र, पीजी कॉलेज के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक ओमकार सिंह ने खेतों में पराली जलाने की हानियों को बताते हुए कहा कि इससे प्रति एकड़ 400 किलोग्राम लाभकारी कार्बन जल कर नष्ट हो जाता है। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व सल्फर जैसे बेहद जरूरी पोषक तत्त्व जल कर नष्ट हो जाते हैं। प्रति ग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ लाभकारी बैक्टीरिया और 1-2 लाख लाभकारी फफूंद नष्ट हो जाते हैं।
पराली जलाने से खेत का बढ़ जाता है तापमान
जब खेत में आग लगाई जाती है, तो खेत की मिट्टी उसी तरह जलती है, जैसे ईंट भट्ठे की ईंट जलती है। खेत का तापमान बढ़ने से उस में पाए जाने वाले लाभकारी जीव जैसे जैविक फर्टिलाइजर राइजोबियम, अजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम, ब्लूग्रीन एलगी और पीएसबी जीवाणु जल कर नष्ट हो जाते हैं। इस के अलावा लाभदायक जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा, जैविक कीटनाशी विबैरिया बैसियाना, वैसिलस थिरूनजनेसिस और किसानों के मित्र कहे जाने वाले केंचुए आग की लपटों से जल कर नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही फसल अवशेष जलने से पैदा होने वाले कार्बन से वायु प्रदूषित होती है, जिसका इंसानों व पशुपक्षियों पर बुरा असर पड़ता है तथा कार्बन डाईआक्साइड ज्यादा निकलने से ओजोन परत भी प्रभावित होती है। धरती का तापमान बढ़ जाता है।
कंपोस्ट खाद खेत में डालना फायदेमंद
पराली न जलाने के उपाय भी मौजूद है। मौजूदा दौर में भारत में इस काम के लिए रोटावेटर जैसी मशीन का इस्तेमाल शुरू हो चुका है, जिस से खेत को तैयार करते समय एक बार में ही फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिलाना काफी आसान हो गया है। जिन क्षेत्रों में नमी की कमी हो, वहां पर फसल अवशेषों की कंपोस्ट खाद तैयार कर के खेत में डालना फायदेमंद होता है, फसल अवशेषों का सही इस्तेमाल करने के लिए जरूरी है कि अवशेषों को खेत में जलाने की बजाय उन से कंपोस्ट तैयार कर के खेत में इस्तेमाल करें।