सरकार लोगों को मुफ्त और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने का ढिंढोरा पीट रही हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। लाखों की आबादी वाले सेवराई तहसील के एक भी अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सक की तैनाती नहीं है। एक्सरे मशीन और अल्ट्रासाउंड तक की सुविधा नहीं है। मजबूरी में मरीज प्राइवेट अस्पतालों में महंगे इलाज कराने को विवश हैं।
सीएससी भदौरा के अलावा बिहार सीमा पर स्थित पीएचसी बारा, गहमर, देवल एवं दिलदारनगर है। इन सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर कोई विशेषज्ञ तैनात न होने से पीड़ितों अथवा प्रसूताओं को या तो जिला अस्पताल रेफर किया जा रहा है या फिर वह प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को विवश हैं। ऑपरेशन के लिए सर्जन, हड्डी रोग विशेषज्ञ, स्त्री और प्रसूति रोग विशेषज्ञ व दंत एवं नेत्र रोग विशेषज्ञों का अभाव है। सबसे ज्यादा परेशानी उन प्रसूताओं को होती है जिन्हें ऑपरेशन के लिए रेफर कर दिया जाता है। हर्निया, पथरी और अपेंडिक्स के भी ऑपरेशन की व्यवस्था नहीं है।
स्वास्थ्य केंद्रों नहीं एएनएम की तैनाती
प्राइवेट अस्पतालों में अप्रशिक्षित लोगों के हाथों सर्जरी से जिंदगी से भी हाथ धोना पड़ रहा है। क्षेत्र में आए दिन जच्चा-बच्चा की मौत हो रही है, लेकिन जिम्मेदार स्थानीय स्तर पर ही मामले को रफा-दफा कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकांश पीएचसी पर चिकित्सक ही नहीं है। यहा मुफ्त एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुल 4 पीएचसी में गहमर एवं दिलदारनगर को छोड़कर कहीं भी चिकित्सक की तैनाती नहीं है। 29 उप स्वास्थ्य केंद्रों में 9 पर एएनएम नहीं है यहां मरीजों का इलाज कौन करता है। यह अपने आप में बड़ा सवाल है सच्चाई यह है कि यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था वार्ड बॉय स्वीपर के हवाले हैं।
अस्पताल परिसर में फैला पशुओं का गोबर
मुस्लिम बाहुल्य बारा गांव में बने वीर अब्दुल हमीद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सकों की तैनाती ना होने से आसपास क्षेत्र के करीब चालीस हजार से अधिक आबादी के लोगों को इलाज के लिए जिला मुख्यालय अथवा बिहार प्रांत के बक्सर जाना पड़ता है। आसपास के लोगों के द्वारा अस्पताल परिसर में ही पशुओं के गोबर व अन्य सामान रखकर अतिक्रमण किए गए हैं।