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कथा वाचक ने कहा कि- भगवान को पाने के लिए भाव का प्रबल होना जरूरी

जमानियां के झारखण्डे महादेव मंदिर परिसर में चल रही 11 दिवसीय श्रीराम कथा का सोमवार शाम को समापन हो गया। अंतिम दिन कथा वाचक पंडित अखिलेश उपाध्याय ने बताया कि संसार के समस्त प्राणियों के समस्त क्रियाकलाप केवल एक ही उपलब्धि हासिल करने के लिए किये जा रहे हैं। वह उपलब्धि है सुख की प्राप्ति।

कथा वाचक ने कहा कि आकाश में उड़ने वाले पक्षी, जल में रहने वाले जलचर और नाबदान में रेंगने वाले कीड़े से लेकर धरती पर विचरण करने वाले मनुष्य तक समस्त उद्योग चाहे वह ईमानदारी से कर रहे हों या बेइमानी पूर्वक, वह भी सुख की प्राप्ति के लिए ही हो रहा है। संसारवासियों से भी सुखानुभूति मिलती है, लेकिन वह अस्थाई सुख होता है। लेकिन किसी संत से जो सुख मिलता है, वह स्थाई सुख होता है।

परमात्मा सुख के सागर हैं, आनंद कंद हैं...

कहा कि क्योंकि संत जीव को परमात्मा से जोड़ने का काम करता है। परमात्मा सुख के सागर हैं, आनंद कंद हैं। जब जीव भगवान से जुड़ जाता है, तब उसे परमानंद की प्राप्ति होती है। वह आनंद चिरस्थाई होता है। पंडित चंद्रेश महराज ने कहा कि भगवान को पाने के लिए किसी गोत्र, जाति और कुल का होना जरूरी नहीं है। जरूरी है भाव का प्रबल होना। मंहगी वस्तु और छप्पन भोग के ऊपर भगवान नहीं रीझते, रीझते हैं भक्त की श्रद्धा से। चाहे फिर वो अर्पित की गई जूठी बेर या केले का छिलका ही क्यों न हो।

इस अवसर पर शिवानंद तिवारी, विनोद श्रीवास्तव, बुच्चा महाराज और पंडित चंद्रेश महाराज ने भी कथा का अमृत पान कराया। सूर्यनाथ चौबे ने वक्ताओं और श्रोताओं के प्रति आभार जताया।

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