लोकसभा चुनावों में अभी भले ही वक्त हो लेकिन दलों ने चुनावी बिसात बिछाना काफी पहले ही शुरू कर दिया है। सपा और बसपा में इन दिनों खुद को भाजपा का मुख्य प्रतिद्वंद्वी साबित करने की होड़ लगी है। सपा जानती है कि भाजपा जिस तरह पिछड़ों को तरजीह दे रही है, ऐसे में उसके पास अपने बेस वोट को बांधे रखने की भी चुनौती होगी। वहीं दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो को उन अल्पसंख्यक वोटों की चिंता है, जो वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में उनसे पूरी तरह छिटक गए थे।
दरअसल, सपा हो या बसपा, दोनों ही गैर भाजपाई वोटों को अपने पाले में खींचना चाहते हैं। सपा की मंशा विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराने की है तो नीला खेमा फिर अपना खोया वोट प्रतिशत पाना चाहता है। जहां तक चुनावी तैयारियों का सवाल है तो जमीनी होमवर्क के मामले में भगवा कैंप अपने विरोधियों से आगे नजर आ रहा है। भाजपा सरकार और संगठन दोनों स्तर पर प्रदेश को मथने में लगी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों डिप्टी सीएम सहित मंत्रियों के जिस तरह दौरे चल रहे हैं, उन्हें देखकर चुनावी मौसम होने का अहसास होता है। वहीं सपा और बसपा का मुख्य राजनैतिक हथियार सड़क की जगह इन दिनों सोशल मीडिया बना हुआ है। माया और अखिलेश नित नये ट्वीट के जरिए न सिर्फ भाजपा को घेरते हैं, बल्कि आपसी टांग खिंचाई से भी नहीं चूक रहे।
कहीं नहीं दिख रही कांग्रेस
सोशल मीडिया पर ही सही, सपा-बसपा लगातार भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी में जुटे हैं। मगर विधानसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस सीन से गायब दिख रही है। पार्टी चार महीने में नया प्रदेश अध्यक्ष तक नहीं खोज पाई है। आम आदमी पार्टी जरूर कुछ सक्रिय दिख रही है।