जिला गाजीपुर वीरों की धरती कहलाता है, इसको यह तमगा यूं ही नहीं मिल गया है। दरअसल गाजीपुर जिले में हर दूसरे घर में भारतीय सेना में कोई न कोई व्यक्ति जरूर सेवा दे रहा है या दे चुका है। यहां की धरती फसल ही उगाती है बल्कि भारतीय सेना के लिए वीरों को भी पालती पोसती और उनको रण क्षेत्र में देश की आन बान शान के लिए मर मिटने की प्रेरणा भी देती है। आज भी यहां के गांव गलियों और कस्बों में सुबह मार्निंग वाक कोई नहीं करता। बल्कि सरपट सेना भर्ती की दौड़ की प्रैक्टिस करते युवाओं की टोली आपको सहज ही नजर आ जाएगी। यहां पढ़ाई और खान पान बेहतर कर सेहत बनाकर सेना में जाने की प्रेरणा हर गली मोहल्ले में आम है।
कभी इसी जिले के छोटे से कस्बे दुल्लहपुर के धामूपुर में अब्दुल हमीद मसऊदी का जन्म हुआ था। बचपन से ही अब्दुल घर परिवार का लाडला था, लेकिन माटी में जब बगावत और देश के लिए मर मिटने की ही पौध उगती है तो अब्दुल हमीद ने भी सेना में जाने का फैसला कर लिया और हवलदार पद पर तैनाती के दौरान ही युद्ध शुरू होते ही बुलावा आया तो बस चल दिए सीमा पर सीना तानकर। उनके शानदार शौर्य और शहादत ने जो इतिहास लिखा वह बच्चे बच्चे की जुबान पर आज भी गाजीपुर में रटा रहता है। वह प्रेरणा हैं लाखों गाजीपुर के युवाओं की जो सेना में जाकर सेवा करना ही अपना सर्वोच्च धर्म आज भी मानते हैं।
गाजीपुर जिले में दुल्लहपुर क्षेत्र के धामूपुर गांव में प्रवेश करने से पहले आपको खेती हरियाली और लोगों की आवाजाही सहज लगेगी। जब आप धामूपुर गांव में जाते हैं तो वहां ग्रामीणों और प्रशासन के सहयोग से बने शहीद पार्क में परमवीर चक्र विजेता बलिदानी वीर अब्दुल हमीद की प्रतिमा उनकी पत्नी के साथ ही मौजूद है। वहीं डेमो के रूप में असली जीप पर लगी आरसीएल गन भी मौजूद है जिसने अब्दुल हमीद को सफल रणनीति को अंजाम देने में मदद की थी। गांव में आयोजन होते हैं अब्दुल हमीद के जन्मदिन और पुण्यतिथि के मौके पर। यहां भारतीय सेना के अफसर भी आते हैं और उनके लिए यह गांव यह याहीद स्थली किसी प्रेरणा स्थल से कम महत्व नहीं रखती है।
जंग में दिखाया जौहर : वर्ष 1965 में पाकिस्तान ने भारत में अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों के मद्देनजर ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत की तो पाक सेना ने जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ और हमला करने के साथ-साथ दूसरे जंग के मोर्चे भी खोलकर भारत को घेरना शुरू कर दिया। जब पाकिस्तान के घुसपैठियों के पकड़े जाने के बाद इसका खुलासा हुआ कि कश्मीर पर कब्जा करने की मंशा से पाकिस्तान 30 हजार जवानों को गुरिल्ला वार का प्रशिक्षण दिया है। 8 सितंबर 1965 को पाकिस्तान ने खेमकरण सेक्टर के उसल उताड़ गांव पर जबरदस्त हमला किया तो उनके साथ पैदल सेना संग पैटर्न टैंक भी मौजूद थे। जबकि भारतीय जवानों के पास थ्री नॉट थ्री रायफल और एलएमजी ही थीं, इसके अलावा गन माउंटेड जीप थी जो अब्दुल के हाथ में आते ही पाकिस्तानी टैंकों के लिए कब्र बन गई।