गंगा का जल स्तर जितनी तेजी से चढ़ा उससे भी अधिक रफ्तार से उतरने लगा है। इससे गंगा तट पर रोजी-रोजगार करने वालों के साथ ही पर्यटन कारोबारियों में सुखद जिंदगानी की उम्मीदें जगने लगी हैं। गंगा का जलस्तर बढ़ने के साथ नावों का संचालन बंद है तो घाट पर आना-जाना भी ठप। बाढ़ के कारण सैलानियों ने भी यात्राएं स्थगित कर दी हैं। इससे रोजी -रोटी का इंतजाम भी हरि नाम रह गया था।
वास्तव में सोमवार तक गंगा के जल स्तर में बढ़ाव की रफ्तार पिछले सभी रिकार्ड तोड़ने की आशंका से दहला रही थी, लेकिन उसी दिन रात दस बजे बढ़ाव थम गया। अगले ही दिन से उतार शुरू हुआ तो गुरुवार शाम छह बजे खतरे के निशान (71.262 मीटर) से 60 सेंटीमीटर नीचे 70.66 मीटर पर आ गया। घटाव की रफ्तार 5.5 सेंटीमीटर बरकरार रही तो माना जा रहा है कि रात भर में पानी चेतावनी बिंदु (70.262) से भी नीचे पहुंच जाएगा।
दो सप्ताह के अंतराल पर गंगा के जल स्तर में 15 अगस्त की रात उफान आ गया था जिससे सिर्फ 12 घंटे में 1.56 मीटर की वृद्धि दर्ज की गई थी। यही नहीं चार दिन यानी 18 अगस्त की रात तक वरुणा तटवर्ती मोहल्ले जलाजल हो गए तो 25 अगस्त को दोपहर दो बजे चेतावनी बिंदु तो 26 की रात खतरे का निशान भी गंगा का जल स्तर पार कर गया था।
इससे श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के सीवेज पंपिप स्टेशन समेत निचले हिस्से में मणिकर्णिका छोर पर बन रहे रैंप से होते पानी घुस गया था। हां, यह जरूर है कि आवागमन वाले क्षेत्र व धाम का गंगा द्वार बाढ़ के उच्चतम बिंदु से ऊपर होने के कारण यह तो पूरी तरह सुरक्षित रहा लेकिन बाहरी श्रद्धालुओं व सैलानियों का आवागमन कम हो गया। फिलहाल गंगा मणिकर्णिका की गलियों को छोड़ प्लेटफार्म पर आ गई हैं। दशाश्वमेधघाट पर सड़क छोड़ कर सीढ़ियां उतरने लगी हैं।
हालांकि सामने घाट-रमना समेत गंगा तटवर्ती इलाके की कालोनियां अभी जलाजल हैं। पानी कम होने से दायरा सिमट रहा जिससे सड़कों-गलियों में कीचड़ दिख रहा। ढाब इलाके में खेतों से पानी सरक रहा तो अब फसलें सडांध मार रही हैं तो कटान भी तेज हो गई है। वरुणा तटवर्ती क्षेत्रों में भी पानी सरक रहा और कचड़ा छोड़ रहा।