सेवराई के ताड़ीघाट बारा मार्ग पर देवकली गांव में अति प्राचीन शिव मंदिर आस्था एवं विश्वास का केंद्र है। अब यह विशाल मंदिर पर्यटन विभाग से जुड़ चुका है। अंग्रेजों के जमाने में बना यह मंदिर अपनी खूबसूरती के लिए आज भी विख्यात है। पहले इस गांव में चारों तरफ जंगल था।
भगवान शिव यहीं विराजमान हो गए। मंदिर के पुजारी 80 वर्षीय शिवशंकर गिरी ने बताया कि पहले इस मंदिर का कपाट पूर्व दिशा की तरफ खुलता था, मंदिर भी उस समय बहुत छोटा था लेकिन अब इसका विस्तार हो चुका है। आस पास सहित दूर-दराज के श्रद्धालुओं की भी आस्था मंदिर से जुड़ी हुई है। सावन मास में भारी संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक करने के लिए आते हैं।
मंदिर के बारे में मान्यता है कि गंगा उस पार के शेरपुर गांव से एक ग्वाला की गाय प्रतिदिन गंगा नदी पार कर देवकली गांव में आकर दूध देती थी। इससे ग्वाला परेशान रहता था। एक दिन गाय की पूंछ पकड़कर वह गंगा नदी पार कर पीछे पीछे चल दिया। गाय ने अपना पूरा दूध जमीन के अंदर धंसी शिवलिंग पर गिरा दिया। खुन्नस खाए ग्वाला ने अपने हाथ में लिए टांगी से जमीन पर कई वार किए, जिससे शिवलिंग को भी नुकसान हुआ। तब भगवान शंकर ने खुद सपने में आकर उसे दर्शन दिया।
आज भी शिवलिंग में धारदार हथियार से प्रहार की वजह से गड्ढे हैं। मंदिर में शिवलिंग भू सतह से 6 फीट नीचे जमीन में है। तत्कालीन पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह यह मंदिर में काफी आस्था रखते हैं। उनके द्वारा महाशिवरात्रि और सावन मास में विशेष पूजा का आयोजन भी कराया जाता है। साथ ही मंदिर समिति द्वारा महाशिवरात्रि पर्व पर विशाल मेला व दंगल प्रतियोगिता का भी आयोजन कई दशकों से होता रहा है। मंदिर के भक्त बताते हैं कि मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर एक मन्नत भगवान भोले शंकर अवश्य पूरी करते हैं।
बदल गया था मंदिर का प्रवेश द्वार
अंग्रेजों के शासन काल में मंदिर के बगल से ही रेलवे लाइन बिछाई जा रही थी। गांव के लोगों ने विरोध किया तो रेलवे के कर्मचारियों ने कहा कि रेलवे लाइन मंदिर के बगल से ही बिछाई जाएगी। शिव में अगर शक्ति है तो वह मंदिर का कपाट किसी दूसरे दिशा में खुल जाए। उसी रात मंदिर का दीवार पश्चिमी दिशा की तरफ अचानक भरभराकर गिर गया। तभी से मंदिर का कपाट पश्चिम दिशा में हो गया। तब अंग्रेज भगवान भोले शंकर के आगे नतमस्तक हो गए। रेलवे लाइन को भी गांव के पूर्व दिशा की तरफ मोड़ दिया गया। यह रेलवे लाइन पंडित दीनदयाल उपाध्याय हावड़ा रूट पर देवकली गांव के पास से गुजरी है।
सावन में जलाभिषेक प्रतियोगिता का होता है आयोजन
श्रावण मास में जलाभिषेक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें श्रद्धालुओं द्वारा गहमर के नरवा गंगा घाट से स्नान के बाद जल भरकर सबसे पहले भगवान भोले शंकर को जलाभिषेक करने की परंपरा है। प्रथम, द्वितीय, तृतीय श्रद्धालुओं का चयन कर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। यह आयोजन क्षेत्र में चर्चा का विषय भी बनता है।