केले की खेती के लिए लगातार बरसात और सूखा दोनों परिस्थितियां हानिकारक होती हैं। इस वर्ष सूखा के बाद लगातार बारिश हो रही है। इसके अतिरिक्त केले के पौधे लगाने का भी समय आ गया है। ऐसे में किसानों को सावधान रहने की जरूरत है। यह कहना था डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व विद्यालय पूसा समस्तीपुर के सह निदेशक अनुसंधान और अखिल भारतीय समन्वित फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डा. एसके सिंह का। वह पिछले सोमवार को समस्तीपुर पहुंचे गाजीपुर के केला किसानों के दल को केला की खेती के बारे में बता रहे थे।
डा. एसके सिंह ने आगे बताया कि पिछले वर्ष लगातार बारिश और नम मौसम के कारण गाजीपुर सहित आसपास के जिलों में केले में एक नई बीमारी देखने को मिली थी, जिसे पिटिंग ब्लास्ट कहते हैं। यह एक फफूंद जनक बीमारी है जो एक जगह से दूसरी जगह काफी तेजी से फैलती है और केले के बागानों को काफी नुकसान पहुंचाती है। यह अत्यधिक आर्द्र मौसम के कारण केरल जैसे प्रदेशों में फैलने वाली एक नई फफूंद जनक बीमारी है, लेकिन पिछले वर्ष लगातार बारिश से यूपी के गाजीपुर और आसपास के जिलों में भी यह बीमारी फैली थी। फफूंद जनक यह बीमारी पैरीकुलेरिया अंगुलेटा द्वारा फैलती है।
डा. एसके सिंह ने बताया कि केले की यह बीमारी केले की परिपक्व पत्तियों मिड्रिव पिटीआल पेडुनेकल और फलों को पकड़ती है। इस रोग के लगने से घौंद का विकास न होना और फ्लो में छोटे-छोटे गड्ढे और निशान देखने को मिले। यहां तक कि केले के फलियों के भीतर का भाग भी काला था। बताया कि इस रोग का मुख्य कारण अत्यधिक वर्षा तो है ही, इसके अलावा किसान अत्यधिक उत्पादन के चक्कर में घने बाग लगा देते हैं,
जिससे उस बाग में नमी और आर्द्रता हमेशा बनी रहती है। इसके चलते इस प्रकार के रोग फैलने की आशंका अधिक रहती है। इसके अलावा यह रोग न हो इसके लिए उच्च क्वालिटी के फफूंद नाशक दवाओं जैसे टेबुकोनाज़ोल और ट्राईफ्लोक्सीस्ट्रोबिन का कॉम्बिनेशन एक ग्राम प्रति लीटर पानी और मेटीरम 55 प्रतिशत व पाइराक्लोस्ट्रोबिन दो ग्राम प्रति लीटर में छिड़काव करें।