सैदपुर का राजकीय बालिका इंटर कॉलेज घोर उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी शेष नहीं रह गया है। स्कूल सिर्फ शिक्षिकाओं के भरोसे यह विद्यालय चल रहा है। यहां कहीं छत टपक रही है, तो कहीं टूटी खिड़कियों के फ्रेम से बंदर अंदर आ रहे हैं। शौचालयों में दरवाजे तक नहीं हैं। जिसके कारण छात्राओं को बेहद कठिन परिस्थितियों में पढ़ाई करनी पड़ रही है।
कॉलेज का निर्माण वर्ष 1998 में तत्कालीन लोक निर्माण एवं पर्यटन मंत्री कलराज मिश्र और राज्यमंत्री नियोजन स्वतंत्र प्रभार डॉ महेंद्र नाथ पांडे की अध्यक्षता में संपन्न हुआ था। गंगा के तट पर लगभग एक हजार छात्राओं की क्षमता वाले इस विद्यालय के बनने के बाद, इसे नगर व क्षेत्र की छात्राओं के लिए वरदान माना गया था। लेकिन, दिनों दिन लगातार होती आ रही उपेक्षा के कारण, आज यह विद्यालय अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।
अध्यापिकाओं के चंदे से चल रहा है विद्यालय
एक समय ऐसा भी आया जब दुर्दशा के कारण विद्यालय में छात्राओं की संख्या घटकर मात्र 30 रह गई। इसके बाद विद्यालय को संचालित करने का जिम्मा यहां की अध्यापिकाओं को उठाना पड़ा। जो आज भी चंदा करके0 विद्यालय की व्यवस्था को काम चलाऊ रूप दिए हुए हैं। जिसकी बदौलत आज विद्यालय में छात्राओं की संख्या 300 तक जा पहुंची है।
यूरिनल तक की नहीं है व्यवस्था
यहां यूरिनल की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण। विवश छात्राओं को शौचालय के रास्ते में ही फर्श का उपयोग करना पड़ता है। जबकि परिसर में ही 10 शौचालय बने है। लेकिन पूरी तरह कंप्लीट नहीं हो पाने के कारण, आज तक विद्यालय की छात्राएं इसका उपयोग नहीं कर पा रही है।
सालों से टूटे पड़े हैं खिड़की-दरवाजे
विद्यालय की सभी खिड़कियों के शीशे वर्षों से टूटे पड़े हैं। खिड़कियों के नाम पर सिर्फ फ्मरे ही शेष रह गया है। जिससे बंदर अंदर आकर छात्राओं को परेशान करते रहते हैं। इससे बचने के लिए कई खिड़कियों को प्लास्टिक की सीट से पूरी तरह ढक दिया गया है। जिसके कारण गर्मी के इस भीषण समय में छात्राओं को परेशानी होती है। कई जगह से विद्यालय की बाउंड्री टूट चुकी है और कई जगह जानलेवा ढंग से लटकी हुई है। पेयजल के नाम पर मात्र एक हैंडपंप की बोरिंग है। जिसका पानी पीने योग्य नहीं है।