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13,000 KM की दूरी तय कर मां के साथ वाराणसी के असि घाट पहुंचे इंग्लैैंड से कैंसर के मरीज ल्यूक

कैंसर का नाम सुनते ही दिल हताशा से बैठ जाता है। सामने मृत्य दिखाई देने लगती है। इस खौफनाक बीमारी से दूसरों को जीवन दान देने के लिए कैंसर के मरीज इंग्लैैंड के रहने वाले ल्यूक ग्रेनफिल शा ने जो किया, उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

24 साल के इंग्लैैंड के ब्रिस्टल शहर के रहने वाले ल्यूक का जीवन भी एक सामान्य नौजवान जैसा ही था। अचानक एक दिन उन्हें पता चला कि चौथे स्टेज के कैंसर के मरीज हैैं। एक पल को तो वह निराश हो गए लेकिन फिर उन्होंने खुद को प्रेरित किया और अपना जीवन उन बच्चों के नाम कर दिया जो इस जानलेवा बीमारी से पीडि़त हैैं। करीब 13,000 किलोमीटर साइकिल चलाकर वह रविवार को अपनी मां के साथ काशी पहुंचे। असि घाट पर ल्यूक ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य कैंसर पीडि़त हजारों बच्चों के इलाज के लिए धन जुटाना है। 

वह तीन लाख पौंड स्टर्लिंग (तीन करोड़ रुपये) इकट्ठा करने के लिए ब्रिस्टल टू बीजिंग साइकिल यात्रा पर निकले हैैं। उन्होंने कहा कि काशी मोक्ष की नगरी है। लेकिन हम यहां जीवन जीने और जीवनदान करने की उम्मीद लेकर आए हैं। बनारस से वह बांग्लादेश और वहां से चीन की राजधानी बीजिंग जाएंगे। इस पूरी यात्रा में वह 30 देशों से गुजरेंगे। ब्रिस्टल से निकलने के बाद नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रिया, हंगरी, सर्बिया और काला सागर पार करके टर्की, जार्जिया, मध्य एशिया और पाकिस्तान आदि देश होते हुए भारत पहुंचे। उन्होंने बताया कि इस यात्रा में उन्हें लोगों का खूब स्नेह मिला।

ल्यूक ने कहा कि किसी अच्छी भावना से यात्रा पर निकलें और इसमें काशी शामिल न हो तो यात्रा अधूरी मानी जाती है। यहां आध्यात्मिक शक्ति है। बाबा काशी विश्वनाथ और मां गंगा से वह अपने मुहिम को पूरा करने का आशीर्वाद मांगने आए हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यात्रा के लिए साइकिल इसलिए चुनी कि ताकि फिट रहकर अपने ऊपर आए संकट को कुछ दिनों के लिए टाल सकें। साइक्लिंग हर रोग को हराने की दवा है। कैंसर का पता चलने के बाद उन्होंने शादी नहीं करने का फैसला किया और अपना जीवन एक बड़े मकसद के नाम कर दिया।

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