गंगा-गोमती संगम की निर्मलता से उसके तराई इलाकों में कई प्रवासी पक्षियों ने कलरव कर चहकना शुरू कर दिया है। गंगा गोमती के संगम सहित तराई इलाकों में शांति और प्रदूषण रहित वातावरण होने के कारण यहां अनेक प्रकार की पक्षियों ने विचरण कर रहे हैं। कुछ दुर्लभ प्रजाति के पक्षी भी समय -समय पर यहां दिख जाते हैं।
गंगा-गोमती के किनारों के आसपास बड़े पेड़ों की उपलब्धता भी इन्हें प्रवास के लिए अनुकूल वातावरण देती हैं। इसके साथ ही गंगा में पाई जाने वाली बहुतायत डाल्फिन की उछलकूद भी इधर बढ़ गई है। नदियों के मुहानों से लेकर संगम क्षेत्र में सर्दी के गुलाबी मौसम में लगभग दो दर्जन से अधिक प्रजातियों के हजारों पंक्षी गोता लगा कर नीले आसमान में उड़ान भरते मिल जाएंगे। इनमें अधिक संख्या प्रवासी पंक्षियों की है। मैना, भुजंगा, नीलकंठ, किगफिशर, टिटहरी, मोर, फाख्ता, बगुला, गौरैया, कबूतर, सिरोही, सतभैया, अबाबील, हुदहुद, बुलबुल, वनमुर्गी जैसी देशी प्रजाति के पक्षियों की अच्छी खासी संख्या इस क्षेत्र में प्रवास करती हैं।
आवासीय और नगरीय इलाकों में पंक्षियों के आशियाने पर कब्जा करके इंसानों ने बहुमंजिली इमारतें खड़ी कर दी है। विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटान से इनकी संख्या में बहुत गिरावट आ रही है। अधिकतर लोग पौधारोपण के नाम पर शोभाकार पौधे लगाते हैं। इनसे चिड़ियों को कोई विशेष लाभ नहीं होता है। पक्षी प्रेमी को पेड़ पाकड़ गूलर जामुन बरगद पीपल नीम आम आदि के लगाए जाने चाहिए। जिन पर इन पंक्षियों का सालभर बसेरा और दानापानी रहता है।
पंक्षी प्रेमी पेड़ों की वाटिका को पंच पल्लव वाटिका कहा जाता है। गंगा किनारे हाइवे और सड़कों के चौड़ीकरण करने से कई विशालकाय पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई, जिससे इन पंक्षियों का स्थायी घोसला खत्म हो गया। गंगा-गोमती के संगम इलाकों में इन प्रवासी पक्षियों के साथ तितलियों और रंगबिरंगे कीट पतंगों की जुगलबंदी बरबस ही लोगों का मन मोह ले रहा है। ये प्रवासी पंक्षियां तटवर्ती इलाकों में पर्यटन और नौकाविहार को एक नया आयाम दे रहे हैं।
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