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ददरी मेला: अभी और सजेगा पशु मेला का बाजार, बाहरी व्यापारियों का इंतजार

शहर से सटे नंदीग्राम में लगा ददरी पशु मेला का बाजार हर दिन परवान चढ़ रहा है। आसपास के जनपदाें के व्यापारी पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। लंबे अंतराल के बाद किसानों और व्यापारियों को यह मौका मिला है। हालांकि अभी बाहर के व्यापारी मेले में नहीं पहुंचे हैं। छठ के बाद उनके आने की संभावना है। 

उसके बाद मेले में ऊंचे दाम के पशु भी उतर जाएंगे। अभी के समय में ज्यादा घोड़े पहुंच रहे हैं। गाय, बछड़े, भैंस, खच्चर आदि भी पहुंचे हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है। व्यपारियों ने बताया कि मेेले में अभी खरीदने वाले कम देखने वाले ही ज्यादा पहुंच रहे हैं। मेले में भीड़ बढ़ने से नगरपालिका की आय लगातार बढ़ रही है।

मेले में पहुंचे हैं यहां के व्यापारी

जिले के ग्रामीण अंचलों समेत पड़ोसी राज्य बिहार के गया, पटना, मुजफ्फरपुर, सिवान, गोपालगंज, समस्तीपुर, छपरा, बक्सर, हाजीपुर आदि जिलों से पशु व्यापारी मेले में पशुओं की खरीदारी के लिए आए हैं। पड़ोसी जनपद गाजीपुर, मऊ, देवरिया और आजमगढ़ से भी पशुओं के खरीदार पहुंचे हैं।

तब और अब में आया काफी अंतर

पशु मेले के स्परूप में डेढ़ दशक पहले और अब में काफी अंतर आ चुका है। मेले की स्थिति बता रही है कि अब गांव-गांव में पशुपालक घट गए हैं। मेले में आए पशुपालक शाेभनाथ सिंह ने बताया कि पशुओं से यह मेला कई एकड़ में खचाखच भरा रहता था। कहीं पशुओं को बांधने वाले रस्सी, घंटी आदि की दुकानें होतीं थी तो कहीं भूसा की दुकान। व्यापारियों के खाने के लिए बाटी और चोखा की दुकानें भी रहतीं थीं। गांव से शाम को बहुत से लोग शौक से भी मेले में आकर रहते थे और गाय के दूध का खीर और बाटी का आनंद लेते थे। 

अब स्थिति बदल गई है। कम संख्या में पशुओं के पहुंचने से मेला कम दूरी में सिमट गया है। व्यापारी मोहन साह ने बताया कि पहले मेले में पंजाब के व्यापारी ज्यादा आते थे। पिछले कई सालों से वहां के व्यापारी नहीं पहुंच पा रहे हैं। गांवों में पहले जब हल से खेतों की जोताई और बोआई होती थी तो घर-घर बैल रखे जाते थे। अब ट्रैक्टर से सभी तरह के कृषि कार्य होने लगे। ऐसे में लोग बैल रखना बंद कर दिए। गाय के पालक भी लगातार कम होते जा रहे हैं। यही कारण है कि मेले में पहले जैसी भीड़ नहीं हो पा रही है।

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