गंगा में आई बाढ़ को गुजरे लगभग एक माह से ऊपर हो गया। इसके बावजूद अभी भी 400 बीघा खेत पानी में डूबा हुआ है। इस वजह से किसानों की रबी की खेती अधर में फंसी नजर आ रही है। स्थानीय ब्लाक स्तर के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा अभी तक पानी निकालने की कोई कवायद भी नहीं शुरू की गई है। इससे किसानों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
करंडा का ताल 15 किमी के रेडियस में फैला हुआ है, जिसमें चना, मसूर, सरसों, जौ, गेंहू, मटर व कुछ हिस्से में सब्जी की खेती की जाती है। गंगा में जब बाढ़ आती है तो यह ताल लबालब भर जाता है। बाढ़ के पानी के उतरने के उपरांत भी मानिकपुर, आनापुर व लखनचन्दपुर मौजा के निचले हिस्से पानी में डूबे रहते हैं। इसे ब्लाक स्तर पर मनरेगा के अंतर्गत या जेसीबी से खोदाई कराके निकाला जाता है पर इस बार अभी तक प्रशासनिक स्तर पर बाढ़ के पानी को निकालने की कोई कवायद नहीं शुरू की गई।
इस वजह से किसान आगामी फसल की बोआई के लिए काफी चितित नजर आ रहे हैं। यदि समय से पानी नहीं निकलेगा तो फिर उसे सूखने में काफी समय लग जाएगा। तब तक रबी का सीजन निकल जाएगा। एक तो खरीफ बाढ़ में डूब गई और रबी की बोआई भी नहीं हो पाएगी तो किसानों के सामने भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। गंगा का बाढ़ का पानी रुकने से किसानों का काफी नुकसान हो रहा है। इसे बाहर निकालने की व्यवस्था की जा रही है। शीघ्र ही इस इलाके को पानी निकलवा कर खेती योग्य बना दिया जाएगा।