सेवराई तहसील के बारा गांव में वीर अब्दुल हमीद पीएचसी के पुराने भवन में संचालित पशु अस्पताल में वर्षों से डाक्टर और कर्मचारी नहीं आ रहे हैं। पशुपालकों को चिकित्सकों व कर्मियों के बारे में जानकारी नहीं है। ऐसे में वह बीमार पशुओं का इलाज झोलाछाप से कराने को विवश हैं। बिना डिग्री और प्रशिक्षण के लोग महंगा इलाज के साथ पशुओं की जान जोखिम में डाल रहे हैं।
बिहार सीमा पर स्थित ग्राम पंचायत बारा में पशु चिकित्सालय खुद बीमार है। अस्पताल हमेशा बंद रहता है। अस्पताल के लिए आवंटित भूमि पर अवैध कब्जा बढ़ता जा रहा है। भूमि पर आसपास के लोगों द्वारा ईंट, बालू व अन्य सामान रखकर कब्जा कर लिया गया है। ग्रामीण अपने मवेशी भी बांधते हैं। आवंटित भूमि पर पशु चिकित्सालय का निर्माण नहीं होने से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के पुराने व जर्जर भवन में पशु अस्पताल संचालित होता था।
यहां वर्षों से चिकित्सक व कर्मियों के न आने से बारा सहित कुतुबपुर, मगरखाई, हरिकरनपुर, भतौरा, दलपतपुर, रोइनी गांव के पशुपालकों को पशुओं के इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। क्षेत्रवासी तारिक खां, फिरोज खां, जयप्रकाश राय, लालमोहर यादव, योगेंद्रनाथ राय, रमेश राय, रामप्रताप यादव सहित अन्य लोगों का कहना है कि डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों के न आने से झोलाछाप डाक्टरों का सहारा लेना पड़ता है। इसके चलते कई बार सही इलाज न मिलने के कारण पशुओं की जान तक चली जाती है।
बारा में डी श्रेणी का पशु चिकित्सालय है। चिकित्सक समेत दो कर्मियों की तैनाती थी। वर्ष 2010 में चिकित्सक तथा दो वर्ष पूर्व दोनों कर्मी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अपर निदेशालय से चिकित्सक की तैनाती की जाती है। अस्पताल के लिए भूमि आवंटित है। भवन निर्माण के लिए स्टीमेट बनाकर शासन को भेजा जाएगा।