कोरोना काल के बाद यूपी रोडवेज की गाजीपुर डिपो की 80 बसों में सिर्फ साठ ही चलाई जा रही हैं। इनमें भी अधिकतर खटारा हैं। इनमें खिड़कियों के शीशे टूटे हैं। शीटें भी सही सलामत नहीं हैं। ये बसें कहां दगा दे जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता है। इससे यात्रियों को यात्रा के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
राज्य सड़क परिवहन निगम की गाजीपुर डिपो के बेड़े में वर्तमान में 80 बसें हैं। इनमें से साठ बसों का ही संचालन किया जा रहा है। डिपो से विभिन्न महानगरों दिल्ली, मथुरा, कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, इलाहाबाद, वाराणसी के साथ ही मऊ, आजमगढ़ और बलिया के लिए बसें चलाई जा रही हैं। इसके अलावा जिले के कई ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोडवेज की बसों का संचालन किया जा रहा है।
गाजीपुर डिपो की कई बसें हैं जो अपना निर्धारित मानक दस से ग्यारह लाख किमी की दूरी का पूरा कर चुकी हैं। ये बसें बार-बार मरम्मत कर विभिन्न मार्गों पर चलाई जा रही हैं। अक्सर ये बसें रास्ते में ही खराब हो जाती हैं और ऐसी दशा में परिचालक को अपने यात्रियों को दूसरी बसों में बैठाना पड़ता है। रोडवेज की अधिकतर बसों की स्थिति यह है कि किसी में दो तीन खिड़कियों में ही शीशे होते हैं। शीटें भी फट चुकी होती हैं।
कुछ बसों में तो इनके साथ कई स्थानों पर एल्युमिनियम की चादर उखड़ी होती है जिसमें फंस कर यात्री के कपड़े फट जाते हैं। खिड़कियां दुरुस्त न रहने के कारण यात्रा के दौरान खिड़की के पास बैठे यात्री धुल धुसरित हो जाते हैं। कुछ बसों की छत जर्जर है जिससे बारिश होने पर पानी टपकता है। इसके चलते यात्रियों को सीट छोड़ दूसरी सीट पर बैठना पड़ता है।
गाजीपुर डिपो के अधिकारी बोले:
गाजीपुर डिपो की प्राथमिकता यात्रियों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराना है। यात्रियों को किसी तरह की असुविधा न हो इसके लिए हर संभव प्रयास किया जाता है।