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काशी में रुढ़‍ियों को दरकिनार कर बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कंधा, तेरहवीं की जगह पौधरोपण का निर्णय

मोक्ष की नगरी काशी में करवट ले रही परंपराओं की कड़ी में रविवार को एक और वर्जना टूटी। रुढिय़ों को दरकिनार करते हुए बेटियों ने पिता को मुखाग्नि देकर अपना फर्ज निभाया। इससे पहले पिता की शवयात्रा में शामिल होकर बेटियों ने कंधा देने के साथ नेत्रदान भी कराया।

चौबेपुर के बरियासनपुर गांव के हरिचरण पटेल (80) का शनिवार की रात निधन हो गया। उनके इकलौते पुत्र भागीरथी पटेल ने इसकी सूचना अपनी बहन प्रेमा देवी व हीरामनी देवी को दी। दोनों बहने ससुराल से मायके आईं। उन्होंने पिता के नेत्र दान करने के संकल्प की जानकारी परिवारीजन को दी। वाराणसी आई बैंक सोसायटी को सूचना दी गई। एक घंटा में डा. अजय मौर्या आए और कुशलता पूर्वक दोनों नेत्र निकाल लिए। दोनों बेटियों ने अर्थी को श्मशान पहुंचाने और स्वयं मुखाग्नि देने का प्रस्ताव रखा।

इस पर भाई ने अपने समाज के लोगों से अनुमति मांगी। इस पर ग्राम प्रधान संघ के अध्यक्ष बाल किशुन पटेल व पूर्व ग्राम प्रधान देवराज पटेल ने हामी भर दी। यह भी तय किया गया कि परिवारीजन कफन के स्थान पर मदद में पैसा देंगे, जिससे शवदाह के लिए लकड़ी खरीदन में सहायता मिले। इसके बाद दोनों बेटियों ने परिवार की सुधा, मंशा, लल्लीच महदेई, रेखा आदि मदद से पिता के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठाया। 

तकरीबन पांच किलोमीटर की दूरी तय कर सभी सरायमोहाना में गंगा किनारे श्मशान घाट पहुंचे। इसके बाद दोनों बहनों ने पिता की चिता सजाई और मुखाग्नि दी। अंत्येष्टि के बाद निर्णय लिया गया कि तेरहवीं पर मृत्यु भोज की जगह केवल शोकसभा होगी। उस दिन पिता की स्मृति में फलदार वृक्ष लगाया जाएगा।

दोनों बहनों के इस निर्णय का परिवार व समाज के लोगों ने खुल कर समर्थन किया। दोनों बहनों ने कहा कि उनके दादा कामरेड अयोध्या पटेल सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे। उनके पिता भी दादा की राह पर ही चलते रहे, इसलिए हम दोनों ने ऐसा कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया है। हमने सिर्फ अपने दादा व पिता की इच्छा और उनके द्वारा दी गई सीख का सम्मान किया है। इस अवसर पर परिवार व गांव के लोग उपस्थित थे।

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