जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर भाजपा प्रत्याशी पूनम मौर्या का निर्विरोध निर्वाचन तय होने के बाद यह दूसरा मौका होगा जब बनारस में अध्यक्ष निर्विरोध चुना जाएगा। इससे पहले 2011 में बसपा प्रत्याशी मधुकर मौर्य निर्वाचित हुए थे। तब प्रदेश में बसपा की सरकार थी। भाजपा से सुजीत सिंह नामांकन करने निकले थे, लेकिन वह नामांकन ही नहीं कर पाए थे। इस बार सपा प्रत्याशी का नामांकन पत्र आपत्ति के आधार पर खारिज कर दिया गया। सत्ता के इर्द-गिर्द कुर्सी घूमने का मिथक एक बार फिर सच साबित होता दिख रहा है।
पिछले सालों के कार्यकाल की बात करें तो जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। 11 बार हुए चुनाव में भाजपा ने चार, सपा तीन, बसपा, कांग्रेस और अपना दल ने एक-एक बार चुनाव जीता है। जिला परिषद से जिला पंचायत बनने के बाद अध्यक्ष का पहला चुनाव 1989 में हुआ था। पहले अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के विद्रोही प्रत्याशी जवाहरलाल जायसवाल जीते थे। बाद में वह चंदौली के सांसद भी रहे। 1995 में सपा के कन्हैया लाल गुप्ता, 1996 में भाजपा के स्व. उदयनाथ सिंह चुलबुल, 1997 में भाजपा के संकठा पटेल, सन-2000 में भाजपा की किरन सिंह, 2006 में सपा की सुचिता पटेल, 2009 में अपना दल के अनिल पटेल और 2011 से 2012 तक बसपा से मधुकर मौर्य जिला पंचायत अध्यक्ष रहे।
हालांकि 2011 में अध्यक्ष पद के चुनाव का मामला कोर्ट में जाने के बाद अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इसमें सपा आगे रही। तब संजय मिश्र, कांति यादव और फूलचंद पटेल की तीन सदस्यीय संचालन समिति के जरिए कार्य आगे बढ़ाया गया। उस समिति का कार्यकाल 2012 से 2014 तक रहा। मधुकर मौर्य मार्च 2014 से अगस्त 2014 तक दोबारा अध्यक्ष बने। अविश्वास प्रस्ताव फिर लगाया गया, जिसमें सपा ने जीत दर्ज की। इसके बाद फिर काशीनाथ यादव, जितेंद्र प्रसाद सिंह और संजय मिश्र की संचालन समिति ने बागडोर संभाल ली। समिति का कार्यकाल दो माह तक ही चला। 2014 में हुए चुनाव में भाजपा के सुजीत सिंह डॉक्टर चुनाव जीत गए। पिछले कार्यकाल 2016 में सपा की अपराजिता सोनकर ने चुनाव जीता। 2017 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद अपराजिता सोनकर भाजपा में शामिल हो गईं। एक बार फिर जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट भाजपा के खाते में जा रही है।