कोरोना संकट के बीच सहालग पड़ गई। दुकानें बंद हैं, ऐसे में शादी-ब्याह का सामान लोग नहीं जुटा पा रहे हैं। दूल्हे द्वारा इस्तेमाल हो चुका सेहरा मांग कर काम चला रहा है। तो कोई शेरवानी तक दूसरों की पहन रहा है। पियरी और चढ़ावा के कपड़े और गहने भी लोग नहीं जुटा पा रहे हैं। ऐसे में घर के पुराने जेवरों का चढ़ावा चढ़ाया जा रहा है। यह सहालगों का समय है। पर इसी बीच कोरोना संकट बढ़ा तो सरकार ने कोरोना चेन तोड़ने के लिए एहतियातन बाजारों पर बंदिश लगा दी। शादी वाले घरों में काफी सामान का बंदोबस्त करना होता है।
लखीमपुर खीरी जिले के काशीनगर निवासी सनी की शादी 14 मई को थी। सब कुछ तय था। पर सेहरा ही नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में पड़ोस के एक दोस्त का सेहरा मांगकर काम चलाया। दोस्त की छह माह पहले ही शादी हुई थी। उसी तरह रेहरिया इलाके के जस्सी को भी रिश्तेदार की शेरवानी मांगकर काम चलाना पड़ा है। लोगों को शादी-बारात को इजाजत तो मिल जाती है। मगर दूल्हे के सिर पर सजने वाला सेहरा हो या दुल्हन के पहनने के लिए लंहगा-चुनरी। यह सब लोगों को नहीं मिल पा रहा है। दुकानें बंद हैं, बाजारों और सड़कों पर पुलिस की सख्ती है। ऐसे में वर-वधू के परिजन घर से निकल नहीं पा रहे हैं। चोरी छिपे अगर शादी ब्याह का सामान कहीं मिल भी जाए तो कीमतों के कोई ठिकाना नहीं है।
लोग दोगुने चौगुने दाम चुकाने से पहले हजार बार सोंच रहे हैं। जरूरी सामान जुटाने के लिए लोगों ने एक तरकीब निकाली। पास पड़ोस और ऐसी रिश्तेदारियों में जहां कुछ समय पहले शादियां हो चुकी हैं। लोग वहां से दूल्हे के सेहरा और दुल्हन का लंहगा चुनरी मांग कर इस्तेमाल कर रहे हैं। इस तरह उधारी के सेहरा और लहंगा चुनरी से दूल्हे-दुल्हन सज रहे हैं।
शादी ब्याह वाले घर में दुल्हन की पियरी और चढ़ावा के कपड़ों के साथ जेवरों की भी जरूरत पड़ती है। जिनका इन्तज़ाम करने में लोगों के पसीना छूट रहा है। शादियों में घर के पुराने जेवर चढ़ावा में जा रहे हैं। जिनसे किसी तरह काम चलाया जा रहा है। भले ही लोग जैसे तैसे सामान जुटा रहे हैं। फिर भी बहुत सी चीजें न मिल पाने की वजह से परम्परागत रस्में पीछे छूटती जा रही हैं।