वाराणसी में शिवपुर निवासी राकेश मौर्या को सांस लेने में तकलीफ के बाद परिजनों ने 18 अप्रैल को जिला अस्पताल में भर्ती कराया। उनके बड़े बेटे सुनील दिल्ली में काम करते हैं वह 19 अप्रैल को बनारस पहुंच गये। 23 अप्रैल को तबीयत बिगड़ने लगी तो डॉक्टरों ने लेवल थ्री के अस्पताल की जरूरत बताई।
बेड की उपलब्धता न होने से परेशान सुनील ने दिल्ली में अपने दोस्त जो प्रशासनिक सेवा में ऊंचे पद पर तैनात हैं, उनसे बीएचयू में सिफारिश लगवाकर एक बेड का इंतजाम कराया। दो दिन तक परिजनों को मरीज की तबीयत के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। 26 अप्रैल को सुबह 6 बजे अस्पताल से सुनील के पास फोन आया। अपनी बॉडी ले जाइये। कुछ देर तक स्तब्ध रहे सुनील को घरवालों ने संभाला। अस्पताल से डेथ सर्टिफिकेट थमा दिया गया। जब डिस्चार्ज समरी मांगी गई तो कोई जवाब नहीं मिला।
सुनील ने बताया कि काश सरकारी अस्पताल में भर्ती न कराया होता तो आज मेरे पापा जिंदा होते। जिला अस्पताल में रात का खाना 11-12 बजे मिलता था। जबकि उनको डॉक्टरों ने रात आठ बजे खाना के बाद दवाएं खाने को कहा था। पापा को समय से खाना उपलब्ध कराने के लिए स्थानीय स्तर पर एक टिफिन सर्विस लगाई। बीएचयू में भी पापा की तबीयत के बारे में मैं पूछता रह गया लेकिन यही कहा गया वो ठीक हैं। सुनील कहते हैं मुझे समझ नहीं आता कि जब वह कुछ घंटे पहले ठीक थे तो अचानक हमें कैसे छोड़कर चले गये। उन्होंने कहा इसी से संवेदनहीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है कि मोर्चरी से पापा की बॉडी एंबुलेंस में पहुंचाने के लिए तीन हजार रुपये मुझसे लिये।