होरी, फाग, रसहोरी, हरिहोरा, लटका, बेलौर, झूमर, चहका, चौताल, चौतल्ली आदि विलुप्त हो रहे गीत को रेवतीपुर के लोग थाती के रूप में संजोए हैं। कई मोहल्लों के लोग शिवरात्रि से इकट्ठा होकर होली गीत गायन शुरू कर पुरानी याद ताजा कर रहें हैं। हालांकि इसमें भी कुछ गिरावट आई है, फिर भी अभी यह परंपरा जीवित है। परंपरागत गीतों पर रेवतीपुरवासी आज भी झूम उठते हैं।
मोहल्ले के बुजुर्ग लोगों के साथ बैठ कर युवा पीढ़ी भी राग लगाते दिखती है। होली पर्व ने भले ही आधुनिकता का लबादा ओढ़ लिया हो, होली गीत अपनी पहचान खो रही हो, लेकिन इस रेवतीपुर गांव के लोग इस दौर में भी होली को उसी पुराने अंदाज में मनाते हैं। पहले तो बसंत ऋतु आते ही इसकी शुरुआत हो जाती थी, लेकिन अब शिवरात्रि से टोलियां चौपाल पर जुटनी शुरू होती हैं। डुग्गी, डंफ, झाल, झांझ, ढोलक व नाल आदि के मधुर संगीत वातावरण में अपना रस घोलना शुरू कर देती हैं। लोग अपने-अपने दरवाजे बुलाकर भी इन टोलियों से होली गीत का गायन कराते हैं। आज भोजपुरी होली गीत की अश्लीलता बढ़ गयी है। लोग घरों में बजाने से परहेज करते हैं, लेकिन ये लोग राधा कृष्ण व माता पार्वती शिवजी पर पुरानी गीत गाते हैं। इसमें अश्लीलता नहीं होती है।