ठंड का सितम बढ़ता ही जा रहा है। कड़ाके की ठंडी ने जनजीवन को बेहाल कर रखा है। ठंड जनित मौसमी बीमारियां भी बढ़ चुकी है। लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए इस ठंड से बच पाना बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। लोग अलाव और गर्म कपड़ों के सहारे ठंड से बचने की कोशिश कर रहे हैं। शुक्रवार को न्यूनतम तापमान सात डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। दोपहर में धूप तो अवश्य हुई, लेकिन हवा चलने से गलन बरकरार रही। ठंड से बचने को लेकर अपनी ओर से भरपूर कोशिश कर रहे हैं। लोग हीटर, गीजर आदि का उपयोग कर रहे हैं। साथ ही सूप पीकर अपने शरीर को गर्मी देने की कोशिश कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग तो ठंड से और भी अधिक परेशान हैं।
सीमित संशाधनों में लोग ठंड से जूझ रहे हैं। छोटे बच्चों, बीमार लोगों, मजदूर वर्ग और सांस संबंधी रोग से परेशान लोगों के लिए यह ठंड किसी परेशानी से कम नहीं है। ठंड के बढते प्रकोप के कारण अस्पतालों में ठंड से पीड़ित रोगियों की संख्या बढ़ने लगी है। कोरोना की वजह से अब तक प्राथमिक और मध्य विद्यालयों को नहीं खोले जाने की वजह से बच्चों को थोड़ी राहत मिली है। ठंड बढ़ने के साथ ही बाजार व्यवस्था पर भी इसका असर दिखाई दे रहा है। बाजारों में काफी कम संख्या में ग्राहक नजर आ रहे हैं। ठंड से बचाव को लेकर इलेक्ट्रानिक उपकरणों की मांग भी अचानक बढ़ गई है।
गर्म कपड़ों की डिमांड में भी बढ़ोतरी हुई है। किसानों के चेहरे भी मुरझाए हुए हैं। पाले से फसल के नष्ट होने का खतरा बना है। खास तौर से सब्जी की फसल इससे काफी प्रभावित हो रही है। पाला पड़ने से सब्जी की फसल जहां झुलस गई है वहीं सरसों का दाना कमजोर होता जा रहा है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक पारा नीचे गिरने से सब्जी समेत कई फसलों पर विपरीत असर पड़ना स्वाभाविक है। कुछ उपाय किसानों द्वारा अपनाए जाएं तो फसल पर सर्दी और पाले के असर को कम किया जा सकता है।