रामनगर में बुधवार की शाम हाल के दो सौ वर्षों में सबसे जुदा थी। तिथि के अनुसार यहां रामलीला का पहला दिन था। इस दिन रामलीला के नेमी-प्रेमी राजा की शाही सवारी के रूप में साक्षात् महादेव के दर्शन की अनुभूति करते हैं मगर इस बार कोरोना ने उनसे यह अवसर छीन लिया। पिछले वर्ष तक शाम के चार बजते ही किले से रामबाग के बीच सड़क पर यातायात बंद हो जाता था लेकिन बुधवार को चालू था। किले के द्वार पर विशेष पुलिस टुकड़ी की जगह दो पहरेदार थे। किले से चौराहे तक सड़क के दोनों ओर आस्थावानों के हुजूम की जगह सामान खरीदने निकले लोगों की भीड़ थी।
रामनगर चौराहे से पीएसी तिराहा मार्ग पर पारंपरिक परिधानों में शाही सेवकों के चेतावनी भरे संकेत के अनुसार राजा के हाथी के पीछे-पीछे चलने वाले लोग भी नहीं दिखे। उस रोड पर वाहन सवारों की कतार थी। रामनगर के एक हिस्से में सामान्य चहल-पहल थी जबकि दूसरे हिस्से में सन्नाटा पसरा था। पहले दिन के लीला स्थल रामबाग और दुर्गा मंदिर पोखरा पर मानो कर्फ्यू लगा हो। रामबाग के पश्चिमी छोर पर हाथी पर सवार शाही परिवाररावण जन्म के प्रसंग का साक्षी बनता है, वहां बरसात का पानी जमा था। बीच मैदान में ऊंची-ऊंची घास जमी है। पारंपरिक परिधानों में, तिलक-त्रिपुंड लगाए, हाथ में छड़ी लिए पक्के महाल के कुछ बनारसी नेमी अपनी कसक मिटाने जरूर पहुंचे।
लीला स्थल की हालत देख वे भी दुखी हो गए। वे आपस में चर्चा करते रहे कि रामलीला न हो पर लीला स्थलों की सफाई होनी चाहिए। हर बार प्रेमियों को लीला स्थल तक पहुंचाने की व्यवस्था में लगी रहने वाली पुलिस इस बार नेमियों को पोखरे की तरफ जाने से रोक रही थी। नेमी गुहार लगाते रहे कि लीला स्थल के दर्शन लाभ से वंचित न किया जाए लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। पोखरे की सीढ़ी पर कपूर जला कर आरती काअनुरोध भी ठुकरा दिया गया। निराश नेमियों ने रामनगर निवासी एक अन्य नेमी के बागीचे में बैठ मानस का पाठ किया।