आईआईटी बीएचयू के स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग में ऐसी स्याही का आविष्कार करने का दावा किया गया है, जिसे सूर्य की रोशनी, बल्ब-टयूबलाइट में नहीं देखा जा सकेगा। इससे नकली नोट, जाली कागजातों को पकड़ना आसान होगा। इसे अल्ट्रावायलेट फ्लोरोसेंट स्याही नाम दिया गया है। इसे अल्ट्रावायलेट लैंप की सहायता से ही देखना संभव होगा। प्राध्यापक डॉ. विशाल मिश्रा ने इस बायो वेस्ट की खोज की है।
गुरुवार को स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग में प्रेसवार्ता में डॉ. विशाल मिश्रा ने कहा कि अमेरिका के केमिकल एजुकेशन जर्नल एसीएस में इस शोध को स्वीकार कर लिया गया है। जल्द ही इसका प्रकाशन किया जाएगा। इस शोध के पेटेंट के लिए आवेदन किया गया है। नोटों व कागजातों पर इस स्याही को 360 नैनोमीटर क्षमता के अल्ट्रावायलट लैंप की मदद से ही देखना संभव होगा। यह लैंप महज चार वाट की बैटरी से संचालित हो सकेगा, जिससे किसी बैंक या वित्तीय संस्थान अथवा प्रशासनिक कार्यालयों को ज्यादा लागत भी नहीं आएगी। इस स्याही की कीमत भी ज्यादा नहीं होगी।
प्रयोगशालाओं में इस्तेमाल होने वाले जैव रसायन से इस स्याही को बनाया गया है। सामान्य तौर पर परीक्षण पूरा होने के बाद जैव रसायन निस्तारण की प्रक्रिया पूरी करने के बाद इस घोल को फेंक दिया जाता है, लेकिन अब इसका भी उपयोग किया जा सकेगा। इस खोज को ग्रीन केमिस्ट्री के रूप में देखा जा रहा है। डॉ. विशाल मिश्रा ने बताया कि कचरे में भी कुछ क्षमता होती है। इसके संभावित फायदों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण यह दुनियाभर में बेकार हो जाता है।