कोरोना ने पूरी दुनिया में कोहराम मचा रखा है। मौतों का आंकड़ा 10 लाख पार पहुंच चुका है। ऐसे भयावह दौर में बापू याद आते हैं। क्योंकि उन्होंने तकरीबन सौ साल पहले शारीरिक दुर्बलता के बावजूद न सिर्फ स्पेनिश फ्लू से पीड़ित रोगियों की सेवा की बल्कि खुद को महामारी से बचाए भी रखा था। बापू ने प्लेग के खिलाफ जंग में भी तमाम जिंदगियां बचाई थीं। सेवा के साथ स्वच्छता, संयम, संतुलित भोजन और व्यायाम के जरिए उन्होंने इन महामारियों को हराया। महात्मा गांधी की सेहत पर वरिष्ठ विषाणु वैज्ञानिक व रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) के निदेशक डॉ. रजनीकांत ने शोध किया। उनके शोध को आईसीएमआर ने ' गांधी एंड हेल्थ @150 ' शीर्षक से प्रकाशित किया है। डॉ. रजनीकांत बताते हैं कि बापू का जोर इलाज से ज्यादा प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत कर बीमारियों से बचाव पर था। वह खुद जब भी बीमार हुए तो उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा को प्राथमिकता दी और प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत बनाने वाले उपायों पर अमल करते रहे। जरूरत पड़ने पर आइसोलेशन में भी रहते थे।
स्वच्छता और संयम के जरिए लड़े स्पेनिश फ्लू से
डॉ. रजनीकांत बताते हैं कि वर्ष 1918 में स्पेनिश फ्लू के प्रकोप के दौरान बापू ने साबरमती आश्रम में संक्रमितों की सेवा शुरू की। उनके परिवार के भी दो सदस्य संक्रमण की चपेट में आ गए। पर वह सेवा में जुटे रहे। मरीजों के नियमित संपर्क में रहने से उन पर भी संक्रमण का खतरा मंडरा रहा था। ऐसे में वह पृथकवास (आइसोलेशन) में भी रहे। इस दौरान ठोस भोज्य पदार्थ की बजाय वह तरल पदार्थ लेते थे।
दो बार प्लेग से लड़े गांधी जी
दक्षिण अफ्रीका में पहली बार बापू का प्लेग से वास्ता पड़ा। जोहानेसबर्ग में बापू ने एम्बुलेंस सेवा शुरू की। इस दौरान उन्हें एक सहयोगी के न्यूमोनिक प्लेग से बीमार होने की सूचना मिली। तत्काल बापू साथियों के साथ गांव में पहुंचे और मिनी अस्पताल खोला। बीमारों की खुद तीमारदारी कर इलाज किया। इस दौरान बापू व उनके सहयोगी सिर्फ एक वक्त का भोजन करते थे। उनका मानना था कि ज्यादा भोजन बीमारी को दावत देता है।