प्लाज्मा और रेमडेसिविर थेरेपी की जुगलबंदी कोरोना मरीजों की जान बचाने में काफी हद तक कारगर साबित हो रही है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने कोरोना के मॉडरेट और गंभीर मरीजों के इलाज में इन दोनों थेरेपी का बराबर से प्रयोग शुरू किया तो मौतों का ग्राफ नीचे आ गया। पहले जहां रोज पांच मरीजों की मौत हो रही थी, अब घटकर एक से तीन पर आ गई है।
मेडिकल कॉलेज के हैलट न्यूरो कोविड हॉस्पिटल में इलाज करने वाले डॉक्टरों ने इन दोनों थेरेपी का प्रयोग कर केस स्टडी तैयार की है। हालांकि, 80 में से 28 की जान दोनों थेरेपी के बाद भी नहीं बचाई जा सकी। इनमें आधे से ज्यादा कोरोना के अति गंभीर मरीज (लेवल-3) रहे, जो पहले से कोमार्बिड थे। उन्हें रेमडेसिविर इंजेक्शन की एक या दो डोज लगीं और प्लाज्मा की एक यूनिट चढ़ाई गई। इसी बीच उनकी मौत हो गई।
मॉडरेट मरीजों पर ज्यादा कारगर
इस थेरेपी की शुरुआत में डॉक्टरों ने मंथन के बाद आठ मरीजों पर इसका प्रयोग टाइमिंग के हिसाब से शुरू किया था। उनमें सात की जान बच गई थी। इसके बाद इसका प्रयोग आगे और बढ़ाया गया। डॉक्टरों की दोनों थेरेपी की स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका मॉडरेट यानी मध्यम (लेवल-2) कोरोना मरीजों पर खासा फायदा हुआ है। 80 फीसदी मॉडरेट मरीजों की जान इससे बचाने में सफलता मिली। डॉक्टरों की मानें तो समय से रेमडेसिविर का डोज दे दिया जाए तो कोरोना वायरस के मरने की गति तेज हो जाती है। इसी समय मरीज को कोरोना विजेताओं का प्लाज्मा मिल जाए तो वायरस से लड़ने की इम्युनिटी मजबूत होने लगती है। इसलिए इसका फायदा मध्यम स्थिति में ज्यादा सामने आया है।