नगर स्थित बूढ़ेनाथ महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिग को प्रभु श्रीराम अपने हाथों से बनाए हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुरादें अवश्य पूरी होती हैं। नवरात्र या शिवरात्रि पर ही नहीं वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ होती है।
बताया जाता है कि मंदिर में स्थापित इस शिवलिग की स्थापना प्रभु श्रीराम अपने हाथों से किए हैं। त्रेतायुग में राजा दशरथ के चारों पुत्रों की वीरता की चर्चा उनके बाल्यावस्था से ही पूरे जगत में हो गई थी। उसी समय ताड़का राक्षसी द्वारा ऋषि-मुनियों की यज्ञ में विघ्न डाला जाने लगा। इससे ऋषि मुनियों की तपस्या पूरी नहीं हो पा रही थी और वे परेशान हो गए। तब विश्वामित्र अयोध्या स्थित राजा दशरथ के दरबार में पहुंचे। उन्होंने ऋषि-मुनियों की समस्या राजा के सामने बताई और उनके बड़े पुत्र श्रीराम व लक्ष्मण को साथ ले जाने के लिए कहा। राजा दशरथ ने कहा कि यह दोनों अभी अबोध बालक हैं।
तब ऋषि ने उन्हें समझाया कि इनकी शक्ति का आकलन कोई नहीं कर सकता है। राजा को मनाकर ऋषि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों को लेकर चल दिए। वे ताड़का वध के लिए गंगा किनारे-किनारे जंगल-जंगल जा रहे थे। उसी समय शाम होने पर ऋषि विश्वामित्र नगर में गंगा तट पर रुके और रात्रि विश्राम किया। सुबह उठने पर उन्होंने श्रीराम से कहा कि पूजन-अर्चन के लिए शिवलिग का निर्माण करें। तब अनुज लक्ष्मण गंगा तट के किनारे से बालू उठाकर ले आए और श्रीराम ने शिवलिग की स्थापना की। ऋषि विश्वामित्र के साथ दोनों राजकुमारों ने शिवलिग का पूजन-अर्चन किया और चले गए। समय के साथ शिवलिग गंगा तट पर जमीन में धंस गया।