कोरोना के गंभीर मरीजों का इलाज अब स्टेरॉयड की कम डोज से होगा। इसके लिए ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में बदलाव किया गया है। अब मरीजों को मिथाइल प्रेडिनीसोलोन की जगह डेक्सामेथासोन दी जाएगी। लोहिया संस्थान और केजीएमयू में इस पर अमल भी शुरू कर दिया गया है। इसके साथ मेरठ में भी इस दवा का इस्तेमाल शुरू करने का निर्देश दिया गया है।
केजीएमयू के पल्मोनरी एंडक्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष व ओएसडी मेरठ डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक अभी तक आमतौर पर गंभीर मरीज को स्टेरॉयड मिथाइल प्रेडिनीसोलोन दी जा रही थी। यह दवा इंजेक्शन के रूप में मरीज को रोजाना पांच सौ से एक हजार एमजी की डोज दी जाती थी। वहीं, टेबलेट व इंजेक्शन दोनों में उपलब्ध स्टेरॉयड डेक्सामेथासोन मरीज को सिर्फ चार से आठ एमजी ही देनी होगी। सात से 10 दिन तक चलने वाली इस स्टेरॉयड की कुल डोज जहां सौ रुपये की पड़ेगी, वहीं मिथाइल प्रेडिनीसोलोन की इतने दिन की डोज छह से 10 हजार रुपये की पड़ती है। ऐसे में केजीएमयू के ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में यह दवा शामिल कर ली गई है। मेरठ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कोरोना के मरीजों में सांस की दिक्कत होने पर डेक्सामेथासोन देने के निर्देश दिए गए हैं।
साइटोकाइन स्टॉर्म को दवा करेगी कंट्रोल
डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक कोरोना में लगभग 80 फीसद माइल्ड, 15 फीसद मॉडरेट व पांच फीसद सीवियर मरीज होते हैं। इनमें से कई में वायरस पहुंचने पर उनका डिफेंस मैकेनिच्म अधिक एक्टिव हो जाता है। इसे इम्युन सिस्टम ओवर ड्राइव भी कहते हैं। ऐसे में इंफ्लेमेट्री मीडिएटर्स शरीर में ज्यादा रिलीज होने लगते हैं। इस स्थिति को साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं। इससे फेफड़े में सूजन और निमोनिया की समस्या हो जाती है। फलत: रेस्पिरेटरी सिस्टम गड़बड़ा जाता है। साइटोकाइन के वायरस के प्रति अधिक उग्र होने से शरीर के अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसी स्थिति मरीज को मल्टी ऑर्गन फेल्योर की तरफ ले जाती है। वहीं डेक्सामेथासोन देने से डिफेंस मैकेनिच्म कंट्रोल में रहेगा। साथ ही साइटोकाइन अधिक मात्रा में रिलीज होने से रुकेगा।