क्षेत्र के माटीगांव में दो हजार साल पहले भी मानव सभ्यता फल-फूल रही थी। काशी हिदू विश्वविद्यालय पुरातत्व विभाग की टीम की ओर से गांव स्थित प्राचीन शिव मंदिर के समीप खोदाई में मिलने वाली पुरातात्विक साक्ष्य इसकी पुष्टि करते हैं। रविवार को पांचवे दिन जमीन के नीचे से भव्य मंदिर का ढांचा और दुर्लभ शंख मिला। इससे पुरातत्वविदों के हौसले बढ़ गए हैं। खोदाई के साथ अतीत के पन्ने खुलते जाएंगे और प्राचीन सभ्यता के बारे में पता लगेगा।
बीएचयू की टीम पिछले पांच दिनों से गांव में खोदाई करा रही है। रविवार को जमीन के नीचे प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले। जमीन के अंदर प्राचीन मंदिर का वास्तु विन्यास, नीव का मुख्य भाग और गर्भगृह में प्रवेश के लिए सीढि़यां मिलीं। सीढि़यों का आकार-प्रकार काफी प्राचीन है। इनकी लंबाई 78 सेंटीमीटर, चौड़ाई 154 सेमी और मोटाई 25 सेमी तक है। इसके अलावा पत्थर का एक दुर्लभ शंख भी मिला है। इस पर अद्भूत नक्काशी है। पुरातत्वविद ईंटों की गुणवत्ता और भवन के आकार-प्रकार के आधार पर इसे गुप्तकालीन अवशेष मान रहे हैं। इसके पहले चार दिनों की खोदाई में भगवान विष्णु की खंडित प्रतिमा, प्राचीनतम मंदिर का अरघा व दीवार मिल चुकी है।
माना जा रहा है कि दो हजार साल पहले उक्त स्थान धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा होगा। गांव में पहले भी गुप्त और कुषाणकालीन ईंटें व बलुआ पत्थर की खंडित मूर्तियां मिल चुकी हैं। बीएचयू के पुरातत्व विभाग ने इसके बाबत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को पत्र भेजकर गांव में खोदाई कराने की अनुमति मांगी थी। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से पत्र प्राप्त होने के बाद विभागाध्यक्ष ओंकारनाथ सिंह के मार्गदर्शन में खोदाई का कार्य कराया जा रहा है। जमीन के अंदर से मिलने वाली वस्तुओं को बीएचयू लैब ले जाकर बारीकी से जांच की जा रही है। टीम में डा. विनय कुमार, प्रोफेसर एके दुबे, राहुल त्यागी, अभिषेक सिंह, प्रेमदीप पटेल, वरूण कुमार सिन्हा, शिवशंकर प्रजापति शामिल हैं।