इसे कोरोना काल में मरीज कहलाने का भय कहें या लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण जीवन शैली में आया बदलाव, लोगों को अब दवा की कम जरूरत पड़ रही है। कोरोना काल ने दवा व्यवसाय को गहरी चोट दी है। हालांकि, पूरे लॉकडाउन के दौरान दवा की दुकानें प्रतिबंध से मुक्त रहीं, इसके बावजूद जिले में दवा के व्यवसाय में दो तिहाई की कमी दर्ज की गई।
कोविड-19 संक्रमण का फैलाव न हो। इसके लिए देशव्यापी लॉकडाउन के नियम सख्ती से लागू किए गए। जिसमें सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानें बंद रहीं। इस दौरान राशन, पारचून आदि सामानों की बिक्री भी खूब होती रही और हो भी रही है। परन्तु, मोहल्ले-मोहल्ले पसरे दवा के खुदरा कारोबारियों की मानें तो लॉकडाउन में उनकी बिक्री में आधी से भी कम रह गई। हालांकि, दवा की बिक्री में हुई कमी का कुल व्यवसाय पर असर नहीं पड़ा और सैनिटाइजर ने इसकी भरपाई कर दी।
बाजार समिति रोड स्थित अजंता मेडिकल हॉल के प्रोपराइटर ललन सिंह कुशवाहा, ज्योति चौक स्थित अजय मेडिकल हॉल के जितेंद्र कुमार कुशवाहा, नया बाजार स्थित कुमार मेडिकल हॉल के लक्ष्मण कुमार उर्फ मुन्ना शर्मा आदि का कहना है कि आम दिनों में सर्दी, खांसी, बुखार, दस्त आदि की दवा ही दिनभर में चार-पांच सौ रुपये की बिक जाती थी। लेकिन, लॉकडाउन के बाद इन रोग से संबंधित दवाओं की बिक्री लगभग शून्य की स्थिति में पहुंच गई है। कारोबारियों का मानना है कि इन बीमारियों पर वातावरण में घटे प्रदूषण का कहीं न कहीं सकारात्मक प्रभाव पड़ते दिख रहा है।