प्रवासी कामगारों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं हैं। मुंबई व गुजरात सरीखे महानगरों से सैकड़ों किलोमीटर की जलालत भरी यात्रा तय करने के बाद घर पहुंचने से पहले उन्हें क्वारंटाइन सेंटरों पर भेज दिया जा रहा है जहां खाने के लिए न भोजन की व्यवस्था है और न ही चिकित्सा का कोई मुकम्मल प्रबंध।
अधिकतर क्वारंटाइन सेंटरों पर भूख से जहां छोटे बच्चे बिलबिला रहे हैं, वहीं बड़ों को भी नहीं मिल रहा है भोजन। फलस्वरूप क्वारंटाइन सेंटरों पर प्रवासी कामगारों की समस्याएं और बढ़ती जा रही हैं। कई क्वारंटाइन सेंटरों पर मानक से अधिक प्रवासी हैं। प्रदेश सरकार का आदेश है कि क्वारंटाइन सेंटर पर रहने वाले प्रवासियों को खाने की व्यवस्था की जाए। इसके लिए प्रति प्रवासी प्रतिदिन 80 रुपये भुगतान करने का भी आदेश दिया गया है लेकिन सच्चाई यह है कि कुछ क्वारंटाइन सेंटरों में ही प्रवासियों को पका-पकाया भोजन मिल रहा है। कई क्वारंटाइन सेंटरों पर तो शुद्ध पेयजल भी नहीं मिल रहा है। लोग खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं।
हॉटस्पॉट क्वारंटाइन सेंटर प्राथमिक विद्यालय करमानपुर में गुजरात के सूरत से 23 मई को सुबह मासूम बच्चों व महिलाओं के साथ 36 प्रवासी मजदूर क्वारंटाइन हुए हैं। सूरत से आए फिरोज, आलम, सलीम, मुन्ना, टुनटुन आदि प्रवासी मजदूरों ने बताया कि गांव के प्रबुद्ध लोग दो से तीन दिनों तक राशन की व्यवस्था कराए।