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खेती न किसानी, कैसे मिलेगा दाना-पानी, अब तो जाना ही पड़ेगा परदेस


अभी दो माह पहले की तो बात है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सांसद आदर्श गांव ककरहिया निवासी चंद्रमा के जीवन में खुशियां तमाम थीं। वह गुजरात के एक पावरलूम कंपनी में काम करते थे और यहां घर पर रहने वाला पूरा परिवार खुशहाल था। सभी का पेट भरते थे तो बच्चे भी स्कूल जाते थे लेकिन कोरोना ने चंद्रमा के खुशहाल जीवन पर ग्रहण लगा दिया।

लॉकडाउन में कंपनी बंद हुई तो चंद्रमा की कमाई भी रुक गई। भूखों मरने से बेहतर घर लौटना उचित समझा और सात मई को यहां आ गए लेकिन उन्हें जरा भी भान न था कि अपने देश में दो वक्त की रोटी भी मुहाल हो जाएगी। क्योंकि, उनके गांव में टूटा-फूटा घर तो है लेकिन खेती-किसानी के लिए नहीं है एक इंच जमीन। सोचे थे कि दूसरों की खेत में किसानी कर उत्पाद के आधे हिस्से की शर्त पर अनाज का इंतजाम कर लेंगे लेकिन सोच साकार नहीं हो सकी। एक वाराणसी में किसानों के पास कम जोत होने और अमूमन हर घर में बाहर से लोगों के लौट आने से यह भी मंशा पूर्ण नहीं हो सकी। वहीं, पावरलूम में काम करने वाले हाथ मनरेगा में मजदूरी कर फावड़ा चलाने में असमर्थ महसूस हो रहे हैं।

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