कोरोना वायरस ने कई परिवारों की रोजी-रोटी छीन ली है। वर्षों परदेस में रहने के बाद उन्हें पेट भरने के लिए अपने गांव लौटने को मजबूर होना पड़ रहा है। बाहर से आने वाले अधिकतर लोग जहां सरकार की ओर टकटकी लगाए निराश बैठे हैं, वहीं कुछ लोगों ने परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने की ठानी। और, गांव में ही कुछ करने का संकल्प लेकर उन्होंने दिल्ली में हो रही कमाई का विकल्प तलाश लिया।
13 वर्ष की आयु में गए थे दिल्ली
भटहट क्षेत्र के ग्राम जंगल हरपुर के अयोध्या प्रसाद भी ऐसे ही लोगों में हैं। लॉकडाउन के कारण दिल्ली ने जब 40 साल पुराना साथ छोड़ दिया तो गांव ने उनका हाथ थाम लिया। वह सब्जी बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं और अब बाहर न जाने का निर्णय ले चुके हैं। अयोध्या करीब 40 साल पहले 13 वर्ष की आयु में दिल्ली चले गए थे। संघर्षों ने उन्हें सोफा व पेंट पालिश के काम में माहिर बना दिया। काम अच्छा चलने लगा तो बेटे अरविंद को भी दिल्ली बुला लिया। पिता-पुत्र मिलकर हर महीने अच्छी-खासी कमाई कर लेते थे। पर, कोरोना महामारी के कारण उनका काम बंद हो गया। खाने व मकान के किराए का संकट हुआ तो दोनों जैसे-तैसे अप्रैल महीने की शुरूआत में ही गांव लौट आए।
आर्थिक तंगी से लड़े, टूटे नहीं
दिल्ली में जमा-जमाया काम छोड़कर आना आसान नहीं था लेकिन जब सबकुछ बंद हो गया तो वापस आना पड़ा। यहां आने के बाद पिता-पुत्र को 14 दिन तक क्वारंटाइन रहना पड़ा। बिना आय के लगातार खर्च होने से परिवार की आर्थिक हालत खराब होने लगी। कुछ सूझ नहीं रहा था। लेकिन, अयोध्या ने आर्थिक तंगी के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि उससे मुकाबला करने की ठान ली। घर पर पड़ी पुरानी साइकिल उठाई और किसानों से संपर्क कर खेत से ही सब्जी खरीदी और गांव-गांव फेरी लगाकर सब्जी बेचने लगे।