हर वर्ष वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नरसिंह जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 6 May को नरसिंह जयंती मनाई जा रही है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी अपने परम भक्त प्रह्लाद के रक्षार्थ और धर्म की स्थापना हेतु नरसिंह रूप में प्रकट होकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप का वध किया था।
भगवान नरसिंह की उत्पत्ति की कथा
पौराणिक ग्रंथो के अनुसार, भगवान श्रीहरि विष्णु जी के १२ अवतार हैं। इनमें १ अवतार भगवान नरसिंह का भी है। आइए, अब कथा जानते हैं- कहा जाता है प्राचीन समय में कश्यप नामक ऋषि रहते थे, जिनकी पत्नी का नाम दिति था उनके 'हरिण्याक्ष' और हिरण्यकश्यप नामक दो पुत्र थे। दोनों ही आसुरी प्रवृति के थे और पृथ्वी लोक पर खूब अत्याचार किया करते थे, जिससे मानव जगत में त्राहिमाम मच गया।
हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की
उस समय भगवान विष्णु जी धर्म की रक्षा और स्थापना हेतु वराह रूप में प्रकट होकर 'हरिण्याक्ष' का वध किया। इससे हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और अजेय रहने के लिए भगवान ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की। हिरण्यकश्यप की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें अजेय होने का वरदान दिया। वर पाकर हिरण्यकश्यप ने सबसे पहले स्वर्ग पर आक्रमण किया और अपना अधिपत्य जमा लिया। इसके बाद उसने तीनों लोक में तांडव मचाना शुरू कर दिया। इससे तीनो लोको में हाहाकार मच गया।
कयाधु के गर्भ से पुत्र का जन्म
उन्हीं दिनों हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ। यह बालक स्वभाव और कर्म से संत बना और हरि विष्णु जी की भक्ति करने लगा। इससे हिरण्यकश्यप काफी क्रोधित हो उठा और कई बार प्रह्लाद की हत्या करने की नाकाम कोशिश की। जब हिरण्यकश्यप का अत्याचार चरम सीमा पर पहुंच गया। उस समय भगवान श्री विष्णु जी धर्म की स्थापना के लिए नरसिंह रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप का वध किया।
नरसिंह जयंती का धार्मिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों में निहित है कि जब-जब धर्म का पतन हुआ है और असुरों का अत्याचार बढ़ा है। तब-तब भगवान पृथ्वी पर अवतरित होकर असुरों का संहार किया है और धर्म की स्थापना की है। ऐसे में इस दिन का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान नरसिंह की पूजा-आराधना करने से व्यक्ति के समस्त दुखों का निवारण होता है और जीवन में मंगल ही मंगल होता है।