लॉकडाउन में मजदूर के बेकाम हाथ पेट भरने लायक भी नहीं रहे। मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली, चेन्नई आदि महानगरों से उनके लौटने का क्रम जारी है। दर्द-ए-दास्तां यह बता रही हैं कि मजबूरी की बेडिय़ां उनका साथ नहीं छोड़ रही हैं। दगाबाजी की आग में वे झुलसते जा रहे हैं। पहले सरकार का सहारा नहीं मिला तो मालिकों ने भी वादाखिलाफी करते हुए काम से निकाल दिया। अब जब वे गहने व बर्तन बेचकर घर के लिए निकले तो रास्ते में ट्रक चालक दगाबाजी से नहीं चूक रहे हैं।
घरों तक पहुंचाने के लिए तीन से चार हजार रुपये लेने के बाद बीच रास्ते उतार दे रहे हैं। जब फरियाद पुलिस के होती है तो मजदूरों के भूखे पेट की पीठ पर लाठियां बरस जाती हैं। गुजरात के वापी से एक ट्रक 70 मजदूरों को लेकर सोमवार को बनारस पहुंचा था। रोहनिया के खुशीपुर गांव में ट्रक चालक ने मजदूरों को उतरने का फरमान सुनाया जबकि मजदूरों को गोंडा जाना था। उन्होंने पुलिस से गुहार लगाई। डीएम का आदेश है कि मजदूर यदि ट्रक से जा रहे हैं तो उन्हें रोका जाए और बस से गंतव्य तक भेजा जाए लेकिन दारोगा जी लाठियां भांजते मजदूरों को ट्रक की ओर झोंक दिया। फिर से ट्रक के ढाले में ठूंस दिया। ट्रक चालक से कहा, ध्यान रहे चौकी की सीमा से बाहर ही रुकना।
मजदूरों ने बयां किया दर्द
नरायनपुर रसड़ा के राजेश पांडेय ने कहा कि कानपुर के कपड़ा फैक्ट्री में काम करता था। लॉकडाउन होने पर फैक्ट्री बंद हो गई। मालिन ने भी काम से निकाल दिया तो पैदल की घर के लिए चल दिए। कटिहार बिहार के उमेश चौहान के अनुसार पुणे में मजदूरी कर रहा था। दिहाड़ी मजदूरी से ही पेट भर रहा था। लॉकडाउन के बाद काम मिलना बंद हो गया। अब घर पर रहकर ही कोई रोजगार करेंगे। बलिया के दिनेश प्रजापति ने कहा कि महाराष्ट्र के कल्याण में मजदूरी करता था। काम बंद होने से भूखों मरने लगा तो घर की ओर निकल पड़ा। रास्ते में मिली दुश्वारियों ने परिवार को रुला दिया।